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धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहट सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी.
चारों दंग रह गए. उन्होंने साधु से क्षमा मांगी और पूछा-बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से बारिश नहीं हुई पर आपके नाचने से हो गयी?
साधु ने उत्तर दिया– मैं इंद्र नहीं हूं न ही गांव वाले ऐसे लालची जो बिना वजह ईश्वर से पानी मांगें. इन लोगों के विश्वास से मुझे आत्मविश्वास मिलता है. इसलिए दो बातों का ध्यान में रखकर नाचता हूं.
पहली बात कि अगर मैं नाचूँगा तो बादलों को बरसना ही पड़ेगा और दूसरी यह कि मैं तब तक नाचूँगा जब तक बारिश न हो जाए.
ईश्वर मेरा निश्चय और मेरी नीयत देख रहे थे. मैं मुकाबला जीतने के लिए नहीं, गांव वालों का भरोसा कायम रखने के लिए नाच रहा था.
तुम भी इसी संकल्प और साफ मन से नाचते तो बादलों को स्वतः बरसना ही था.
हमें सफल लोगों की सफलता का चमकदार पहलू तो दिखाई देता है लेकिन उनके पैरों की बिवाइयां नहीं दिखतीं जो उन्होंने सफलता के लिए किए परिश्रम में पाई हैं.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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