[sc:fb]
गंगाराम ने स्नान के बाद सोचा क्यों न रविदास की बात भी आजमा ली जाए. हालांकि उसे विश्वास नहीं था कि मांं स्वयं आएंगी.
भक्त जी की दमड़ी निकालकर विनती की- हे माता! तेरे भक्त रविदास जी ने एक दमड़ी भेजी है, अपने भक्त की भेंट को हाथ निकालकर स्वीकार करो.
पण्डित जी के साथ में आए हुए लोग यह सोच रहे थे कि आज तक अरबों संत साधू कुम्भ पर आए हैं पर गंगाजी का हाथ किसी ने नहीं देखा. भला वह उस जूते बनाने वाले की भेंट लेने के लिए अपने हाथ क्यों आगे करेगी.
पर तभी ऐसा अचंभा हुआ जिसकी किसी को आशा न थी. मां गंगा ने अपना सीधा हाथ जल से ऊपर किया और दमड़ी ले ली.
दमड़ी लेकर मां गंगा ने कहा- मेरे भक्त के लिए मेरी तरफ से कुछ भेंट ले जाओ. गँगा मां ने अपने बाएं हाथ से हीरों से जड़ा हुआ कंगन निकालकर पण्डितजी के हाथ पर रखा और कहा यह रविदास को दे देना.
गंगाराम इस हीरे के कंगन को देखकर अपना धर्मकर्म भूल गया और लोभ के कारण सोचने लगा कि मैं इसे रविदास को नहीं दूँगा. इसे किसी जौहरी को दिखाकर बेच दूंगा और सारी जिन्दगी ऐश से गुजारूंगा.
कुछ समय पण्डित बाजार में गया और कंगन जौहरी को दिखाया. जौहरी हैरान कि ऐसी अद्भुत चीज इस कंगले के पास कहाँ से!
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.