गोकर्ण लौटकर आया तब भी उसवने धुंधुकारी को प्रेत योनि में ही भटकता पाया. उसे घोर आश्चर्य हुआ कि पिंडदान से भी इसे मुक्ति क्यों न मिली.
उसने विद्वानों से परामर्श किया लेकिन कोई नहीं बता पाया. किसी ने उसे भगवान सूर्य की आराधना कर मार्ग पूछने का सुझाव दिया.
गोकर्ण ने तब भगवान सूर्य की अराधना की और धुंधुकारी की प्रेतयोनि के अन्धकार से मुक्ति का उपाय पूछा.
सूर्यदेव प्रकट हुए और बोले- तुम्हारे भाई की मुक्ति का केवल एक मार्ग है. उसे श्रीमद् भागवत पुराण सुनाओ. एक सप्ताह तक प्रतिदिन भागवत कथा सुनने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
गोकर्ण ने कहा- धुंधुकारी प्रेत है, वह साधारण मानव की तरह मेरे सामने बैठकर यह कथा कैसे सुनेगा. इसका मार्ग भी बताइए.
सूर्यदेव ने कहा- कथा स्थल पर सात गांठ वाला एक बांस गाड़ देना. प्रेत बांस की अंतिम गांठ में सूक्ष्म रूप से बैठ जाएगा. जैसे कथा पूर्ण होगी बांस की गांठें फटती जाएंगी.
जैसे ही अंतिम गांठ चटककर फटेगी, वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाएगा. गोकर्ण ने सूर्यदेव के मार्गदर्शन से धुंधुकारी के उद्धार और सर्वमंगल की कामना से श्रीमद् भागवत की कथा सुनाने का निश्चय किया.
पूरे क्षेत्र में यह समाचार फैल गया. कथा सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आए. एक ऊंचे आसन पर बैठकर गोकर्ण ने भागवत कथा वाचन प्ररम्भ कर दिया.
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