बुद्ध ने पूछा- यदि वह व्यक्ति चलना भी न चाहे, तैरने को भी तैयार हो और न ही नांव में जाने को तैयार हो पर कहे कि मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस नदी का दूसरा किनारा स्वयं चल कर मेरे पास आ जाए तो?
महात्मा जी ने कहा- प्रभु ऐसे व्यक्ति को तो मूर्ख नहीं महामूर्ख ही कहा जा सकता है.
बुद्ध बोले- इसी प्रकार व्यक्ति अज्ञान को अपने विवेक से मिटायेगा नहीं तो परम आनन्द और मुक्ति के दूसरे छोर तक कैसे पहुंच पायेगा? चाहे वह कितनी पूजा या अनुष्ठान कर ले पर शास्त्रों की बताई किसी नीति पर न चले तो वह इस किनारे ही रहेगा.
महात्मा जी गदगद होकर बोले- हमें आज तक जीवन के इतने जटिल तथ्य को इतनी सरलता से किसी ने नहीं समझाया. आपने धर्म की उचित व्याख्या करके मन का भ्रम मिटाया.
ईश्वर ने मनुष्य को सबसे ज्यादा विवेकशील प्राणी बनाकर इसलिए भेजा क्योंकि उन्हें आशा थी कि मनुष्य अपने विवेक के प्रयोग से ईश्वर के भावों को अच्छे से समझकर उसपर चले.
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