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सन्त बोले- तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार कैसे आया?
राजाने कहा‒ जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं और सड़क, बाजार, दूकानें, मकान, मनुष्य आदि किसी की भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, उसे देखकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि मेरे मन में आपसे तत्काल मिलने का विचार आया.
सन्त बोले- यही तो तरीका है भगवान को प्राप्त करने का. राजन्! ऐसे ही तुम एक ही धुन में भगवान् की तरफ लग जाओ, अन्य किसी की भी तरफ मत देखो, उनके बिना रह न सको, तो भगवान् के मन में तुमसे मिलने का विचार आ जायगा और वे तुरन्त मिल भी जायेंगे.
भगवान तो सुपात्रों के पास आकर स्वयं मिलने और उनसे सुख-दुख बांटने को बेचैन रहते हैं, इंसान उस योग्य बना ही नहीं पाता स्वयं को.
उस संत ने थोड़े शब्दों में सारी भक्ति-भाव का निचोड़ निकालकर रख दिया. जिसने सृष्टि बनाई वह क्या अकेलापन महसूस नहीं कर लेगा जब इसी सृष्टि को भोलने वाला कोई ऐसा न मिले जो उनसे उनकी रचना की चर्चा कर सके.
आप कोई घर बनाते हैं तो उसे देखने वालों, उसमें रहने वालों सभी से घर बनाने में आई बाधाओं से लेकर उसकी सुंदरता तक की छोटी-बड़ी बात की चर्चा कितने प्रेम से करते हैं. क्या भगवान की यह इच्छा नहीं होती होगी.
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