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एक व्यक्ति अपनी परेशानियों से जूझ रहा था. उसे लगता कि वही संसार का सबसे दुखी व्यक्ति है.
उसे प्रभु से इस बात की बड़ी शिकायत थी कि प्रभु ने संसार के सारे दुख उसके हिस्से दे दिए और फिर कान में तेल डालकर सो गए हैं.
सोते-जागते प्रभु से प्रार्थना करता और फिर कभी भगवान को तो कभी खुद को कोसता रहता. भगवान हैं कि न तो विनती से सुन रहे थे और न उलाहने से, बेचारा करे भी तो क्या करे?
एक दिन उसने सोने से पहले प्रार्थना की- प्रभु आपके सामने कहता-कहता थक गया. अब और मिन्नतों की इच्छा होती नहीं. एक अंतिम बार कह रहा हूं, कृपा करके ध्यान दीजिए.
यदि आप मेरे दुख मिटा नहीं सकते तो कम से यह तो कर सकते हैं कि किसी ऐसे व्यक्ति के दुखों से मेरा दुख बदल दीजिए जो मेरे से कम दुखी हो. हमेशा के लिए नहीं तो कम से कुछ ही महीनों के लिए कर दीजिए. मुझे भी कुछ राहत मिले.
भगवान ने उस दिन उसकी आखिर सुन ही ली. उस रात उसे सपने में भगवान दिखे.
भगवान बोले- मैं तुम्हारी प्रार्थना रोज सुन रहा था पर उनके ऊपर ध्यान ज्यादा दे रहा था जो ज्यादा कष्ट में हैं. खैर, तुम अपने कष्टों को विस्तार से कागज पर लिखो, एक गठरी बनाओ और शहर के मुख्य चौराहे पर टांग आओ.
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