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अब आप बिना इन्टरनेट के पौराणिक कथाएं, व्रत-त्योहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र, श्रीराम शलाका प्रश्नावली, व्रत-त्योहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं. डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प.
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सुंदर कथाओं से सींचते मन की नींव पर ही आप जिम्मेदार और सफल नागरिक रूपी महल खड़ा कर सकेंगे.
आज का विषय है आत्मविश्वासः चुनौतियों से भागें नहीं, लड़ने की कला विकसित करें.
सबसे पहले यह बता दूं कि यह पोस्ट आखिर क्यों आज लेकर आए हैं. इसमें आपको क्या सीखने को मिलेगा? हर व्यक्ति इस असमंजस से गुजरता है जब उसका बच्चा किसी न किसी कारण से हिम्मत हारता है और ऐसे में उसकी जिम्मेदारी हो जाती है उसे हौसला देने की.
तो यह पोस्ट आपको ऐसे धार्मिक संदर्भों और प्रेरक कथाओं के संदर्भों से कुछ बातें समझाएगी जो सरलता से बच्चों के मन में उतर जाएं. साथ ही आपमें भी कुछ जरूरी सुधार की आवश्यकता पर बल देगी. माता-पिता अपना सुख-दुख अपने बच्चों में ही देखते हैं लेकिन उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहता कि उनकी कुछ आदतें बच्चों का अप्रत्यक्ष रूप से बड़ा नुकसान कर रही हैं.
प्रभु शरणम् एक धार्मिक मिशन है लेकिन धर्म की स्थापना स्वस्थ मस्तिष्क से ही तो होगी. इसलिए हम नैतिक बल बढ़ाने वाली कथाएं नियमित रूप से देते रहते हैं. ये कथाएं आपके लिए और आपके बच्चों दोनों के लिए उपयोगी है. आप प्रभु शरणम् से जुड़े जरूर. लिंक ऊपर है. अब मुद्दे की बात पर लौटते हैं.
बच्चे अक्सर आपको यह कहते सुनते हैं कि हे भगवान सारी परेशानी मुझे ही देनी थी. हमें यह कहने और भगवान को कोसने की आदत लग जाती है.
इस बात को सुनते-सुनते बच्चों को भी इसकी लत पड़ जाती है. वे यही समझने लगते हैं कि सारी परेशानियां उनके ही साथ हैं. वे भी आपकी ही तरह भगवान को कोसकर सुस्त बैठ जाते हैं. क्या यह सही परवरिश है?
आपको बच्चों में आत्मविश्वास भरना होगा. उन्हें समझाना होगा कि इस संसार में हम आए हैं तो परेशानियां आनी ही हैं. कितनी परेशानियों के लिए भगवान को कोसेंगे, एक के बाद एक आती ही रहेगीं.
नाम उनका हुआ है जो परेशानियों की चुनौती को पारकर आगे बढ़े हैं न कि उनका जिनके लिए सब सरल और सहज था. क्या बेहतर नहीं है कि हम इसका सामना करते हुए इससे निकलने की राह खोजें.
पर क्या यह इतना सरल है?
नहीं सरल तो नहीं पर असंभव भी नहीं. बच्चों को तो वही समझा पाएगा जो पहले खुद समझ ले और विश्वास है कि इसे पढ़ने के बाद आपके मन पर प्रभाव तो जरूर पड़ेगा.
बच्चे का मन तो कच्ची मिट्टी जैसा है, उसे तो जैसे चाहें ढाल लेंगे. मुझे तो सबसे पहले आपके मन को बदलने का प्रयास करना है. आपका मन तो पक्का घड़ा है- रंग आसानी से चढ़ेगा नहीं.
आज दो प्रसंग सुनाउंगा. पहले तो आपमें वह विश्वास लाने वाला प्रसंग फिर बच्चों में. दोनों ही काम के हैं-ध्यान से सुनिए और समझिए.
भगवान श्रीराम से शुरू करता हूं. श्रीहरि ने राजकुल में अवतार लिया-राकुमार की तरह. किशोरवय हुए तो महर्षि विश्वामित्र आ गए और राजा से उनके दो राजकुमार मांग ले गए उन हजारों राक्षसों का वध करने के लिए जिनसे ऋषिगण नहीं जूझ पाए.
राजा दशरथ को तो पता नहीं था कि उनके पुत्र कौन हैं. मन पर पत्थर रखकर भेजना पड़ा क्योंकि ब्राह्मण द्वारा की गई याचना को क्षत्रिय द्वारा ठुकराना वर्जित था.
गुरू वशिष्ठ ने उत्तम मूहूर्त देखा राज्याभिषेक के लिए पर ऐन राजा बनने के पहले उन्हें वनवास मिल गया. कहां राजा बनना था कहां वन चले गए. वन में भाई ने आकर पैरों की खड़ाऊं मांग ली. नंगे पांव कांटे-कंकड़ सहे.
जैसे तहे रह ही रहे थे कि पत्नी का हरण हो गया. सहायता के लिए वानरों की सहायता लेनी पडी जिनके लिए प्रचलित था कि प्रातः मुख देख लो तो दिन में भोजन नहीं मिलता.
वानरों की सहायता से सागर तट पहुंचे तो वहां समुद्र अकड़ने लगा. भगवान याचना कर रहे हैं वह अकड ही नहीं छोड़ रहा.
रावण को मारकर पत्नी प्राप्त की, राजा बने. सुख के दिन शुरू ही हुए थे कि कुछ ही दिनों में समाज ने घेर लिया. ऊंगलियां उठीं तो पत्नी का त्याग करना पड़ा. पत्नी वियोग में ही रहे. पुत्र वन में जन्मे. परमात्मा भी पृथ्वी पर आते हैं तो कैसे-कैसे कष्ट सहते हैं.
श्रीकृष्ण की कथा तो और दारूण है. राजा के पुत्र का जन्म जेल में, चोरी से एक ग्वाले के घर आश्रय लिया. वहां राक्षसों से लडते प्राण बचाते रहे. जिसे देखो चोरी का आरोप लगा देता. मां कभी ओखली से बांध देती तो कभी कुछ.
कंसवध करके पिता को छुडाया और सुख के दिन शुरू ही हुए थे कि रणछोड़ बनना पड़ा. क्षत्रिय के लिए रण से भागना मृत्यु के समान ही था.
अलग द्वारिका बसाई. फिर मणि चोरी का आरोप लग गया. कुरू राजसभा में दुर्योधन को समझाने आए तो उसने उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया. जगदीश्वर को बांधने का दुःसाहस.
सबसे बड़े संहार महाभारत के युद्ध में शामिल होना पड़ा वह भी एक साधारण सारथी के रूप में. युद्ध में सारथी का रैंक तो बहुत नीचे होता है. गांधारी का शाप झेला और एक बहेलिए के हाथों मारे गए जब थके हुए विश्राम कर रहे थे. अब मुद्दे की बात.
क्या आपने अपने जीवन में श्रीराम और श्रीकृष्ण के समान कष्ट झेले हैं क्या! ईमानदारी से सोचना.
मित्रों यह मृत्युलोक है. यहां हम आते ही कष्ट भोगने को हैं. जो कष्ट हम भोग रहे हैं वे कर्मों के दंड हैं. जैसे पुराना कर्ज जल्दी चुकता न किया तो उसका ब्याज बढ़ता जाएगा उसी तरह जल्दी से भोग लें सारे कष्ट तभी सुख के दिन मिलेंगे. पहले पुराना हिसाब तो चुका लें.
क्या अब भी आपको लगता है कि आपका ही गम सबसे बड़ा है. इस लोक में तो नियमों से छूट प्रभु के लिए भी नहीं है तो हम और आप क्या चीज हैं. यही सोचिए और परेशानियों का सामना करिए. पर बच्चों को इतनी गहरी बात नहीं समझाई जा सकती है. यह खुराक तो आपके लिए थी.
बच्चों को समझाने के लिए आपको एक कथा सुनाता हूं. उससे पहले एक जरूरी बात. मैं दिन में ऐसी कई कथाएं प्रभु शरणम् एप्पस में डालता हूं- यहां तो बस एक कथा आती है दिन में. तो क्या ज्यादा सरल नहीं होगा कि आप एप्प ही डाउनलोड कर लें.
लिंक फिर से दे रहा हूं उसे क्लिक करके डाउनलोड कर लें. अब कथा की ओर बढ़ते हैं.
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