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यवक्रीत ने उनकी बात को अनसुना करते हुए कहा- खैर, आप बताइए आप बालू क्यों फेंक रहे हैं?”

इंद्र ने कहा- मैं बालू फेंककर गंगा पर मजबूत पुल बना रहा हूं.

उनकी बात सुनकर यवक्रीत जोर से हंसा.

उसने कहा- आप उम्र में बड़े हैं, ज्ञानी हैं फिर भी कैसी बातें कर रहे हैं. ऐसे कहीं गंगा पर पुल बन सकता है?

इंद्र ने उत्तर दिया- तुम्हारी बात तो ठीक है बेटा कि बालू से पुल नहीं बन सकता लेकिन तुम्हीं बताओ बिना पढ़े ज्ञान कैसे मिल सकता है? जिस प्रकार बिना अक्षर के कोई शब्द नहीं बन सकता, बिना बीज के पौधा नहीं उग सकता उसी तरह बिना अध्ययन के ज्ञान भी नहीं मिल सकता.

इंद्र की बात सुनकर यवक्रीत समझ गया कि वह ब्राह्मण कोई साधारण मानव नहीं हैं.

उसने हाथ जोड़कर कहा- आपने मेरी आंखें खोल दीं. आप कौन हैं? अपना वास्तविक परिचय दें.

इंद्र अपने असली रूप में आ गए. उन्होंने यवक्रीत को समझाया कि अगर तपस्या करके किसी देव को प्रसन्न करके ज्ञान मिल भी गया तो तुम्हें उतना ही ज्ञान मिलेगा जितना कि खुद उस देवता के पास है.

बाकी का ज्ञान तो फिर भी नहीं मिल सकता. लेकिन अगर तुम खुद से अध्ययन करोगे तो दुनिया का कोई भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हो.

यवक्रीत ने खूब लगन से अध्ययन किया. समस्त ज्ञान प्राप्तकर बाद में तपोदत्त के नाम से विख्यात हुए.

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-राजन प्रकाश
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