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तब यवक्रीत को लगा कि उसे भी पढ़ाई करके वेद-शास्त्रों का ज्ञान हासिल करना चाहिए था.

उसने सोचा कि अगर वह पढ़ाई शुरू करता है तो फिर ज्ञान प्राप्त करने में तो जाने कितने साल लग जाएंगे.

उसने विचार किया कि अगर देवताओं के राजा इंद्र को तपस्या से प्रसन्न कर ले तो वह सारा ज्ञान उसे दे देंगे. फिर इतने साल तक पुस्तकों के पीछे दिमाग खपाने के झंझट में कौन पड़े!

यवक्रीत गंगा के किनारे ध्यान लगाकर बैठ गया. वह इंद्र का आह्वान करने लगा.

इंद्र को बात पता चल गई.

इंद्र ब्राह्मण का वेश बनाकर आए और यवक्रीत के नजदीक ही बैठकर दोनों हाथों से गंगा में बालू(रेत) फेंकने लगे.

यवक्रीत ने उन्हें ऐसा करते देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ.

उसने इंद्र से कहा- विप्रवर आप नदी में ऐसे बालू क्यों फेंक रहे हैं, आपका क्या उद्देश्य है?

ब्राह्मण वेशधारी इंद्र ने पूछा- पहले तुम बताओ, क्यों तपस्या कर रहे हो?”

यवक्रीत ने बताया कि वह पढ़ने-लिखने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहता इसलिए वह तपस्या कर रहा है ताकि इंद्र प्रसन्न हो जाएं और दुनिया का सारा ज्ञान उसे दे दें.

इंद्र ने कहा, “ऐसा नहीं होता. अगर ज्ञान तपस्या से ही मिलने लगे तो कोई अध्ययन क्यों करे, सभी तप करने लगेंगे. खुद देवताओं ने अध्ययन से ज्ञान प्राप्त किया है.”

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