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एक बदलाव आपको अपने में लाना है. आप यह मानकर चलना छोड दें कि समस्या बच्चे में है. गौर से देखें तो बच्चे से ज्यादा परेशानी आपमें है.
बहुत से लोग बच्चों पर जबरदस्ती पढ़ाई भी लादते चले जाते हैं. बच्चा कितना भी पढ़ने में होशियार हो, उसके प्रदर्शन से संतुष्ट ही नहीं होंगे.
उसके सामने रोज एक नया लक्ष्य रखते जाएंगे. आपके टारगेट के बोझ तले पिस रहा है आपका बच्चा.
इसे और विस्तार से समझिए.मानकर चलते हैं कि आप युवा माता-पिता हैं. 25 से 30 के बीच के. हाउसवाइफ हैं या वर्किंग पिता हैं.
30 की उम्र में आने से पहले पी.टी.उषा को संसार में सभी जानते थे. जुकरबर्ग ने अरबों रूपए कमा लिए थे. सचिन तेंदुलकर ने सारे रिकॉर्ड बना लिए थे. भगवान शंकराचार्य जी संसार को ज्ञान की रोशनी में नहलाकर विदा हो रहे थे.
पर आप तो साधारण ही रह गए. ऐसा क्यों? आप क्यों नहीं हुए उतने बड़े?
यही बात बच्चे पर भी लागू होती है. क्लास में सबसे आगे कोई एक ही हो सकता है, सभी नहीं. उस होड़ में झोंककर आप अपने बच्चे के नैसर्गिक गुण को न पहचान रहे हैं न उसे निखार रहे हैं.
हर व्यक्ति में भगवान ने एक ऐसा गुण भरा है जो उसे दूसरों से बेहतर बनाता है. आप उसे पहचानने का भी प्रयास करें.
मैं ऐसा नहीं कह रहा कि उसे पढ़ने की जरूरत नहीं. पढ़ना तो बेहद जरूरी है लेकिन फर्स्ट ही आए उसके लिए बाध्य करना जरूरी नहीं.
याद रखिए यदि बचपन से उसे जिम्मेदार नागरिक बनाने पर ध्यान देंगे तो यकीन रखिए वह अपना सुंदर करियर अपने दम पर बना लेगा. जो सद्गगुण आप भरेंगे वह व्यर्थ नहीं जाएगा.
पढ़ने में बड़ा होशियार हो बच्चा पर उद्दंड हो जाए. घर में कोई आए तो उसके साथ बदतमीजी कर दे, रास्ते में चलता किसी को पत्थर मार दे या किसी पर थूक दे और झगड़ा होने लगे.
क्या उस समय आप उसकी मार्कशीट निकालकर दिखाएंगे और सब ठीक हो जाएगा. नहीं न.
मैं कोई काल्पनिक बात नहीं कर रहा, मैंने ऐसे बच्चे देखे हैं. माताृ-पिता लाड करते रहे कि क्लास में फर्स्ट आता है, बस थोड़ा चंचल है. इसे सुधारने की जरूरत है.
यदि आप स्वयं में सुधार लाने को मानसिक रूप से तैयार हो गए हों तो बच्चे को प्रेरित करने के लिए एक कथा सुनाता हूं. यह कथा सुनाकर बच्चे को प्रोत्साहित करें. आपके लिए भरद्वाज पुत्र यवक्रीत की कथा बहुत काम आएगी. आपको कथा सुनाता हूं.
भरद्वाज मुनि के बेटे यवक्रीत को पढ़ने-लिखने में बिलकुल मन नहीं लगता था. धीरे-धीरे उसके सभी मित्र बड़े ज्ञानी हो गए और उन्हें सम्मान मिलने लगा.
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