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बालक इठलाता हुआ शरीर को टेढ़ा करके चल रहा था. इन्होंने मन में जान लिया यही है जल्दी से बाहर निकल आए. उनको सादर दंडवत प्रणामकर उनके चरणकमल को पकड़ लिया फिर वार्ता शुरू हुई.
बालक बोला- बाबा! मै बनिए का बेटा हूं. आपने मेरे पैर पकड़े हैं. मुझे पाप लगेगा. मेरी मैया ने देख लिया तो मारेगी! बाबा मैं तुम मधुकरी दूंगा और जो मांगेगा दूंगा पर मेरा पैर छोड़ दे. नहीं तो मेरी पिटाई होने लगेगी.
बाबा उसकी सारी बातों को अनसुनी कर विनय करने लगे. हे मेरे प्रिय प्रभु! एक बार दर्शन देकर मेरे प्राणों को शीतल करो. हे श्रीकृष्ण! अब छल चातुरी मत करो! मुझे अपने अभय चरणकमलों में स्थान दो.
इस तरह तर्क-वितर्क करते-करते जब भक्त और भक्तवत्सल भगवान के बीच आधी रात हो गई पर बाबाजी ने किसी तरह चरण न छोड़े, तो श्री कृष्ण बोले- अच्छा बाबा मेरा स्वरुप देख! श्री कृष्ण ने त्रिभंग मुरलीधर रूप में बाबा को दर्शन दिए.
तब बाबा ने कहा- मैं केवल मात्र आपका ही तो ध्यान नहीं करता, मैं तो युगल रूप का उपासक हूँ, अत: हे प्रभु! एक बार सपरिवार दर्शन देकर मेरे प्राण बचाओ!
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