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बाबा बोले -आप तो अप्राकृत धाम के भूत हैं. आपको तो निश्चय ही श्री युगलकिशोर के दर्शन होते होंगे. उनकी लीला प्रत्यक्ष देखते होंगे.
भूत बोला दर्शन तो होते है, लीला भी देखता हूं, लेकिन आप उसका जैसा रस ले सकते हैं इस देह में वह योग्यता नहीं है, इसलिए व्यर्थ है. बाबा की भी दर्शन की इच्छा हुई और बोले- मुझे भी एक बार दर्शन करा दो?
भूत ने बताया कि यह उसके अधिकार के बाहर की बात है. बाबा को निराशा हुई. उन्होंने भूत से कहा- दर्शन नहीं करा सकते तो दर्शन की कोई युक्ति ही बता दो.
भूत बोला- तो सुनो, कल शाम यशोदा कुंड पर जाना. संध्या समय जब ग्वालबाल वन से गौएं चराकर लौटेंगे तो इन ग्वाल बालों में सबसे पीछे जो बालक होगा वह होंगे ‘श्री कृष्ण”. इतना बताकर वह कूकररूपी भूत चला गया.
अब तो बाबा बेचैनी में इधर-उधर फिरने लगे. वक्त काटना मुश्किल हो गया. कभी रोते, कभी हँसते, कभी नृत्य करते, अधीर थे, बड़ी मुश्किल से वह लंबी रात्रि कटी. प्रातः होते ही यशोदा कुंड के पास एक झाड़ी में छिपकर शाम की प्रतीक्षा करने लगे.
मन कभी भाव उठता कि तो बड़ा अयोग्य हूं, मुझे प्रभु के दर्शन मिलना असंभव है? यह विचार कर रोते-रोते रज में लोट जाते. फिर जब ध्यान आता कि श्रीकृष्ण तो करुणासागर है मुझ दीन-हीन पर अवश्य ही कृपा करेंगे तो आनन्द मगन हो जाते.
ऐसे करते शाम हो गई. गोधुलि रंजित आकाश देख बड़े प्रसन्न हुए. एक-एक दो-दो ग्वालबाल अपने-अपने गौओं के झुंड को हांकते चले आ रहे है. जब सब निकल गए तो सबके पीछे एक ग्वाल बाल आ रहा था. कृष्णवर्ण का.
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