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पर कछुए रूपी केवट का मन भरा नहीं. प्रभु ने सोचा कि अगर वह संतुष्ट न हुआ तो बार-बार जन्म लेता रहेगा. कुछ करना होगा.
श्रीहरि भगवान कृष्ण के रूप में आए, कछुआ इस बार सुदामा हुआ. माता लक्ष्मी रुक्मिणी और शेषनाग बलदाऊ का रूप धरकर आए. एक दिन सुदामा बना वह कछुआ प्रभु से मिलने आया.
उसके पैरों में धूल लगी थी. राह के पत्थरों से घाव हो गया था और खून बह रहा था. प्रभु ने अपने हाथों से सुदामा के पैर धोए, रुक्मिणी जल लेकर आईं और बलदाऊ दो मित्रों का मिलन देखकर भाव विभोर होते रहे.
अब कछुए को अभिलाषा से ज्यादा सुख मिल चुका था.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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