parvatiji ganesh ji

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जीवित्पुत्रिका व्रत यानी जीवित पुत्र के लिए रखा जाने वाला व्रत है. यह व्रत वह सभी सौभाग्यवती स्त्रियां रखती हैं जिनको पुत्र होते हैं. साथ ही जिनके पुत्र नहीं होते वे स्त्रियां भी पुत्र की कामना और पुत्री की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं.

आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को प्रदोष काल यानी जब सूर्य छुप रहा हो और शाम गहराने लगे, माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और संपन्नता की मनोकामना से यह व्रत करती हैं.

ग्रामीण इलाकों में इसे “जीउतिया” के नाम से भी जाना जाता है. बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस व्रत की बडी मान्यता है. इसमें स्त्रियां अपनी संतान के कष्टों को हरने के लिए 24 घंटे का निर्जल व्रत रखती हैं.

इस साल यह व्रत 23 सितंबर 2016 को हो रहा है.

24 घंटे के निर्जल व्रत को खर जीउतिया कहा जाता है.

चक्की में पिसे हुए गेहूं के आटे में गुड़ मिलाकर शुद्ध घी में पकवान बनाया जाता है. पुत्र के नाम का एक बंधन माताएं अपने गले में धारण कर लेती हैं. मान्यता है कि चक्की में वह संतान पीस देती हैं. जो कुछ बच जाता है उसे स्वयं धारण कर लेती हैं.

पार्वतीजी ने एक स्थान पर स्त्रियों को विलाप करते देखा तो शिवजी से उसका कारण पूछा. शिवजी ने बताया कि इन स्त्रियों के पुत्रों का निधन हो गया है इसलिए ये विलाप कर रही हैं.

पार्वतीजी बहुत दुखी हो गईं. उन्होंने कहा- हे नाथ एक माता के लिए इससे अधिक हृदय विदारक बात क्या हो सकती है कि उसके सामने उसका पुत्र मर जाए. इससे मुक्ति का कोई तो मार्ग हो, कृपया बताएं.

शिवजी ने कहा- हे देवी जो विधाता द्वारा रचित है उसमें हेर-फेर नहीं हो सकता किंतु जीमूतवाहन की पूजा से माताएं अपनी संतान पर आए प्राणघाती संकटों को भी टाल सकती हैं.

जो माता आश्विन मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को जीमूतवाहन की पूजा विधि-विधान से करेगी उसकी संतान के संकटों का नाश होगा.

पार्वतीजी के अनुरोध पर शिवजी ने उन मृत बालकों को पुनः जीवित कर दिया. इस कारण ही इसे जीवितपुत्रिका व्रत कहा जाता है.

जीमूतवाहन की कथा ही मुख्य रूप से सुनी जाती है किंतु आंचलिक क्षेत्रों में कई कथाएं प्रचलित हैं जिसमें चिल्हो-सियारो की कथा भी है. आपको जीवितपुत्रिका की संक्षिप्त व्रत कथा सुनाते हैं.

व्रत कथा पढ़ें अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

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