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वेद ने अपने तपोबल से आह्वान किया तो क्षणमात्र में ही इंद्र समेत सभी देवता वहां मौजूद थे. देवताओं ने वेद से वर मांगने को कहा- वेद ने पिता की चरणों की निर्मल भक्ति मांगी. देवता वर देकर चले गए. वेद ने युवती से कहा- अब घर चलें माता.
युवती बोली- यह तो तुम्हारी तपस्या का बल है जो तुमने दिखा दिया इसे मैं नहीं मानती. मैं तो अपने पिता से प्रति तुम्हारा प्रेम परखना चाहती हूं. मैं तुम्हारे पिता से शादी कर लूंगी अगर तुम उनके लिए अपना सर अपने ही हाथ से काटकर मुझे दे दो.
वेद ने सिर काटकर उस युवती को दे दिया. युवती खून से सना वेदशर्मा का सर लेकर उसके पिता शिवशर्मा के पास पहुंची. वेद के सारे भाई वहीं पर थे. देखते ही बोले- वेद धन्य है जिसका शरीर पिता के काम आया.
शिवशर्मा ने अपने कटा सर तीसरे बेटे को देकर आदेश दिया- तुम अपने भाई को जीवित कर दो. धर्म ने भाइयों को भेज धड़ मंगवाया और धर्मराज को पुकार कर कहा कि अगर मैं सच्चा पिताभक्त हूं तो मेरे भाई की गर्दन जुड़ जाए, वह जिंदा हो जाए.
धर्मराज खुद आए. वेद के सिर को जोड़ा और धर्मशर्मा को पितृभक्ति का वर देकर चले गए. वेदशर्मा जीवित हो उठा. उसने आंखें खोलीं तो वहां न तो उसके पिता थे न वह युवती. बाद में वेद ने धर्म को और धर्म ने वेद को सारी कहानी बतायी.
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