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जब लंका युद्ध में मेघनाद ने लक्ष्मणजी को शक्ति मार दी और लक्ष्मणजी अचेत पड़ गए तो भगवान श्रीराम भाई का कष्ट देखकर विलाप करने लगे. विलाप करते हुए वह अपने बचपन की एक घटना स्मरण करते हैं जब लक्ष्मणजी ने मेघनाथ को बंदी बना लिया था.

भगवान श्रीराम भावुक होकर विलाप करते हुए कहते हैं कि अगर उस दिन पिता के वचन न माना होता तो आज यह दशा न आती. प्रभु की वेदना का वर्णन करते हुए तुलसीदासजी ने एक चौपाई लिखी है-

जो जनतेउ वन बंधु बिछोहू।
पिता बचन मनतेउ नहिं ओहू॥

पिता के वचन की लाज रखने के लिए वनवास में चले आए भगवान श्रीराम पिताजी के किस वचन के मानने पर दुख प्रकट कर रहे हैं. इसकी एक कथा है, उसका आप आनंद लीजिए.

एक बार रावण को समुद्र किनारे शिव-आराधना के समय एक कमलपुष्प की पंखुडी कहीं से बहकर आती दिखाई दी. पंखुडी अद्वितीय सुन्दर थी. रावण ने ऐसा सुंदर कमलदल नहीं देखा था.

उसे देखकर विचार करने लगा कि पंखुडी जिस कमल पुष्प का हिस्सा है वह पुष्प कितना सुन्दर होगा? काश पूरा कमलपुष्प पा जाऊँ तो अपने आराध्य भगवान भोलनाथ को अर्पित करके उन्हें प्रसन्न करता.

रावण बस यही विचार करते हुए वहीं बैठा रहा. रावण पूजा के बाद समय से वापस नहीं आया तो मंदोदरी को चिंता हुई.

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