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जिनका इस स्नान से मन निर्मल होता है बस वही लोग स्वर्ग जाते हैं. इतने सारे कहां जाने वाले हैं? यह उत्तर सुनकर सुनकर पार्वतीजी के मन का सन्देह घटने की बजाय और बढ़ ही गया.
पार्वतीजी बोलीं – यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया और किसने मन को पवित्र किया. शिवजी ने बताया कि यह उसके कर्मों से समझा जाता है. पर्वतीजी की शंका अब भी नहीं मिटी.
शिवजी ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देखकर कहा- चलो मैं तुम्हें अब सारी बात एक प्रत्यक्ष उदाहरण के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूं. हमें एक स्वांग करना होगा.
शिवजी ने बहुत कुरूप कोढ़ी का रूप लिया और राह में एख स्थान पर लेट गए. पार्वतीजी को अत्यंत रूपवती स्त्री का शरीर धरने को कहा. पार्वतीजी कुरुप कोढ़ी बने शिवजी के साथ स्नान के लिए जाते मार्ग के किनारे बैठ गईं.
स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती. ऐसी अलौकिक सुंदरी के साथ ऐसा कुरूप कोढ़ी! कौतूहल में सभी इस बेमेल जोड़ी के बारे में पूछताछ करते. पार्वतीजी शिवजी द्वारा रटाया विवरण सुनाती रहतीं.
यह कोढ़ी मेरा पति है. गंगा स्नान की इच्छा से आए हैं. गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ. बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहाँ बैठे हैं.
अधिकाँश दर्शकों की नीयत डिगती दिखती. वे सुन्दरी को प्रलोभन देते और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते. पार्वतीजी को क्रोध आता लेकिन शिवजी ने शांत रहने का वचन लिया था.
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