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शनिः

सप्तम भाव में शनि का होना भी किसी प्रकार से शुभ नहीं है. इससे दांपत्य जीवन अत्यंत कष्टमय और छोटी-छोटी बातों को लेकर कलह की प्रवृति बढ़ेगी.

यदि पुरुष के सप्तम भाव में शनि हो तो पत्नी के प्रति लगाव दिखावे वाला और किसी स्वार्थवश हो सकता है.

यदि स्त्री के सप्तम भाव में शनि हो तो वह अपने पति पर हावी होती है. चरित्र में दोष होता है या पति पर शंका करती है जिससे परिवार में कलह का माहौल रहता है.

यदि शनि स्वगृही, उच्चराशिगत हो तो उतना दोषपूर्ण नहीं होता है.

शनि, मंगल, राहु, केतु सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तमेश के साथ हो लेकिन शुभग्रहों (चंद्रमा, गुरू, बुध और शुक्र) की दृष्टि उस पर न हो तो पति-पत्नी में तलाक हो सकता है.

ऐसे लोगों का दांपत्य सुख नहीं के बराबर होता है. जीवनसाथी के साथ संबंध कलहपूर्ण, क्रोधमय और जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है साथ ही जीवनसाथी खासतौर से पत्नी रोगों से ग्रस्त रहती है.

इन दोषों को दूर करना संभव हैः

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