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इस पर कल्याणी बोली – “ईश्वर का दिया हमारे पास सब कुछ है और मैं इससे खुश भी हूं. परन्तु आड़े वक्त के लिए भी हमें कुछ बचाकर रखना चाहिए.” कल्याणी के समझाने पर तीरथ मान गया. बचत करने के लिए दोनों पहले से अधिक मेहनत करने लगे.
कल्याणी अब सुबह 4 बजे उठकर काम में लग जाती. तीरथ भी रात देर तक काम करता. लेकिन फिर भी दोनों अधिक बचत नहीं कर पाते. न तीरथ पहले की तरह बांसुरी बजाता न कल्याणी उसकी धुन पर गुनगुनाती. दोनों ने फैसला किया कि अपना सुख-चैन खोना उचित नहीं है.
बचत का इरादा छोड़ वे पहले की तरह मस्त रहने लगे. एक दिन तीरथ बर्तन बेचकर बाजार से घर लौट रहा था. अचानक उसकी निगाह एक चमचमाती थैली पर गई. उसने थैली उठाई तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. थैली में चांदी के सिक्के भरे थे.
तीरथ ने सोचा कि यह थैली जरूर किसी की गिर गई है. वह थैली के मालिक को खोजने लगा. उसने चारों तरफ खोजबीन की लेकिन दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दिया. हारकर वह इसे ईश्वर का दिया उपहार समझकर घर ले आया. घर आकर तीरथ ने सारा किस्सा कल्याणी को कह सुनाया.
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Very nice and heart touching literature.
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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