हमारा फेसबुक पेज लाईक करें.[sc:fb]

गुरूजी मुस्कुराए. वह समझ गए कि यह कोई रटा-रटाया तोता भर है जो प्रवचन को बस जैसे कहा जाता है वैसे सुन लेता है उसका कोई चिंतन-मनन नहीं करता.

महात्माजी बोले- जब रामायण की रचना हुई थी तब मैं नहीं था. जब श्रीराम वन में भटक रहे थे, तब मेरा कोई अस्तित्व नहीं था. मेरा ज्ञान भी अभी उतना पक्का नहीं कि रामायण की प्रासंगिकता पर कोई टिप्पणी कर सकूं.

हां इतना जरूर कह सकता हूं कि रामायण के अध्ययन से मिलने वाली शिक्षा से सुधरकर मैं आज यहां हूं जहां लोग सम्मान दे रहे हैं. चाहो तो तुम भी इसका प्रयोग आरंभ करो और जीवन को सुधारकर परिवर्तन को स्वयं महसूस करो.

धर्मग्रंथों या नीतिग्रंथों की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाने से अच्छा है उसके कुछ गुणों को अपनाकर देखा जाए. विज्ञान प्रयोगशाला में परीक्षण के सिद्धांत की बात कहता है.

मनुष्य के जीवन से बड़ी लेबोरेट्री क्या होगी. जो धर्मग्रंथों का माखौल उड़ाने लगें उन्हें आप कम से कम एक ऐसा आदर्श बदलाव जीवन में लाने को कहें जो हमारे आराध्य देवों में थे. जीवन में आए परिवर्तन के साथ ही उनके आंखों पर पड़ी पट्टी उतर जाएगी.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

अब आप बिना इन्टरनेट के व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र , श्रीराम शलाका प्रशनावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं.इसके लिए डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें

ये भी पढ़ें-

करियर की बाधाओं का ज्योतिष से निकाल सकते हैं हलः करियर में सफलता के लिए सरल और बिना खर्च वाले उपाय

कहीं आप भी तो नहीं करते वही काम जिससे राजा भोज जैसे विद्वान मूर्खराज कह दिए गए- प्रेरक कथा

प्रभु श्रीराम का सम्मान, धर्मसंकट में सेवक श्री हनुमानः हनुमानजी की भक्ति कथा

हम ऐसी कथाएँ देते रहते हैं. Facebook Page Like करने से ये कहानियां आप तक हमेशा पहुंचती रहेंगी और आपका आशीर्वाद भी हमें प्राप्त होगा: Please Like Prabhu Sharnam Facebook Page

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here