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बुद्ध बोले- राजकुमार, ठीक इसी तरह जिस वचन के बारे में मैं जानता हूं कि यह मिथ्या या अनर्थकारी है और उससे दूसरों के हृदय को ठेस पहुंचती है, तब मैं उसका कभी उच्चारण नहीं करता.

इसी तरह जो वचन सत्य और हितकारी होते हैं, भले ही वह दूसरों को अप्रिय लगते हों, फिर भी मैं उन्हें कहता हूं.

इसका कारण वही है, मेरे मन में सभी प्राणियों के प्रति अनुकंपा है. उसका हित किसी भी प्रकार हो इसका प्रयास करना ही चाहिए. यही मानव धर्म है.

जीवन आवागमन का दोतरफा मार्ग यानी two way traffic है. कोई भी मार्ग यह नहीं कह सकता कि दूसरे की उपयोगिता कम है. बच्चों की जितनी जिम्मेदारी है उतनी ही समझदारी बड़ों को भी दिखानी होगी.

आप परिवार के बड़े हैं तो कई बार आपको भी उस बेल के मन का भाव समझना होगा. यदि उस बेल में उत्साह ही न हो कि आपके द्वारा लगाई रस्सियों पर आपकी आशा से अधिक फैल जाए तो फिर रस्सियों पर ही बढ़कर ही कुछ हासिल नहीं कर लेगा.

उसकी ऊर्जा को दबाना नहीं है, वह ऊर्जा सही दिशा में रहे बस इसके लिए अलर्ट रहना है. आप जिस चीज को जितना दबाएंगे वह उतना ही ज्यादा उभरेगा, प्रतिरोध में उठेगा.

यही संसार का नियम है और इसी कारण दूरियां बढ़ती हैं. उम्र और अनुभव के साथ आपका हृदय भी बड़ा होना चाहिए.

क्या यह कथा उपयोगी लगी? बताइएगा जरूर,क्योंकि आपके फीडबैक से ही मुझे सुधार करने का, सीखने का अवसर मिलता है. संसार में एक विद्यार्थी की तरह आया हूं और विद्यार्थी की तरह ही विदा होना है. हर दिन सीखने का…
-राजन प्रकाश

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