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बुद्ध ने अभय के प्रश्न का आशय जान लिया.
गौतम बुद्ध बोले- राजकुमार आपके इस प्रश्न का उत्तर न तो हां में दिया जा सकता है और न नहीं में. इसे अलग तरीके से समझाना होगा. अभय की गोद में उस समय उनका पुत्र बैठा खेल रहा था.
बुद्ध ने पूछा- राजकुमार, यदि आपकी या सेविका की नजर बचाकर अनजाने में यह बालक अपने मुख में कांच का एक टुकड़ा डाल ले, तब तुम क्या करोगे?’
अभय ने कहा- भंते मैं उसे निकालने का प्रयास करूंगा.
बुद्ध ने प्रश्न किया- यदि वह आसानी से न निकल सकता हो तो क्या करोगे, छोड़ दोगे या फिर भी कुछ करोगे?
अभय ने कहा- भंते छोड़ कैसे दूंगा. वह कांच तो इसके लिए हानिकारक है. उसे निकालना ही होगा. मैं बाएं हाथ से उसका सिर पकड़कर दाहिने हाथ की उंगली को टेढ़ा करके उसे निकालूंगा.
यह तो काफी बल प्रयोग जैसे हो जाएगा. उस बालक में मुख में कांच पहले से ही है. यदि इस कारण उसके मुख से खून निकलने लगे तो?- बुद्ध का अगला प्रश्न था.
अभय अधीर होकर बोला- तो भी मेरा यही प्रयास रहेगा कि वह कांच का टुकड़ा किसी न किसी तरह बाहर निकल आए. मैं उसे निकालकर रहूंगा.
पर ऐसा क्यों, तुम वह कांच का टुकड़ा इस बालक के मुख से निकालने के लिए इतना श्रम इतना हठ क्यों करोगे? ‘
अभय ने कहा- ‘इसलिए भंते क्योंकि यह मेरी संतान है. इसके प्रति मेरे मन में प्रेम है. किसी भी प्रकार से इसका अहित हो रहा हो तो मैं चुपचाप नहीं देख सकता. मैं उसे दूर करने का हर प्रकार से प्रयास करूंगा.
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