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भोलेनाथ प्रसन्न हो गए. वह देवी पार्वती के साथ रावण के सामने प्रकट हुए. अब श्रीहरि ने अपनी माया फैलाई जिसके प्रभाव से रावण की बुद्धि भ्रष्ट हो गई. वह शिवजी से कैलाश मांगने के बजाय जगदम्बा पार्वती पर मोहित हो गया और उसने भगवान शिव से देवी पार्वती को ही मांग लिया.
भोलेनाथ वचन में थे. उन्होंने भक्त को देवी पार्वती दान कर दी. लेकिन पार्वतीजी को ले जाने के लिए एक शर्त रखी कि रावण आगे-आगे चलेगा और पार्वती जी पीछे-पीछे आएंगी. रावण जब तक लंका नहीं पहुँचता, तब तक उसे पीछे मुडकर नहीं देखना होगा.
अगर उसने मुड़कर देखा तो देवी पार्वती वहीं स्थापित हो जाएंगी. रावण माया के प्रभाव में कैलाश की जगह पार्वतीजी को लेकर चला.संकट में फंसी देवी पार्वती ने अपने भाई श्रीहरि का स्मरण किया. श्री हरि ने नारद को कहा कि वह रावण के पास जाएं और उसे बातों में उलझाएं.
जब रावण गोकर्ण तक पहुँचा तो उसे नारद मिल गए. नारद ने मीठी-मीठी बातों में फंसाकर रावण को भ्रमित करना शुरू किया. उन्होंने रावण से पूछा कि तुम्हारे पीछे-पीछे चल रही यह कुरूप स्त्री कौन है?
रावण ने कहा कि आपको भ्रम हुआ है. वह जगत सुन्दरी जगदम्बा पार्वती हैं. मैंने वरदान में उन्हें प्राप्त किया है. नारद जोर से हंसे. उन्होंने कहा कि ज़रा पीछे मुड के तो देखो. तुम्हारे साथ छल हुआ है. देवी जगदंबा के स्थान पर कोई अन्य स्त्री तुम्हारे पीछे आ रही है.
रावण ने मुड के देखा. उस समय देवी ने भद्रकाली का रूप धारण किया हुआ था. जैसे ही रावण ने उन्हें देखा देवी भद्रकाली मूर्ति के रूप में गोकर्ण में स्थापित हो गईं. रावण विलाप करने लगा तो नारदजी ने बताया कि कि असली पार्वती ने पाताल में मायासुर की पुत्री मंदोदरी के रूप में जन्म लिया है.
रावण पाताल की ओर चल पड़ा. उसने मायासुर को युद्ध में हराकर उसकी बेटी मंदोदरी से विवाह किया. पत्नी को लेकर वह लंका पहुंचा. कैकसी ने पूछा कि यह किसे ले आए तो उसने सारी बात कह सुनाई.
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