December 7, 2025

जीवात्मा और परमात्मा का मिलन अधूरा ही क्यों रह जाता है?

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एक पेड़ पर दो पक्षी बैठे थे. एक ऊपर की डाल पर दूसरा नीचे की डाल पर बैठा था. ऊपर की डाल पर बैठा पक्षी स्थिर भाव वाला था. अपनी धुन में रहता. एकदाम शांत मिजाज से और संतुष्टि के भाव से भरा हुआ. नीचे वाला पक्षी उससे उलट स्वभाव का था.

वह बड़े चंचल स्वभाव का था. वह कभी इस डाल पर फुदकता कभी उस डाल पर. कभी छोटी सी खुशी मिल जाती तो खुद को बड़ा भाग्यशाली समझने लगता तो कभी छोटी सी परेशानी भी आ जाए तो भाग्य का रोना रोने लगता, नसीब को कोसने लगता.

हर चीज से उसका मन तुरंत भर जाता था. वह तरह-तरह के फलों के पीछे भागता. कभी बहुत मीठे फल मिल जाते तो बड़ा खुश होता, कभी कड़वे फल मिलते तो सभी को कोसने लगता. पेड़ को कोसता, फल को कोसता और कभी-कभी तो ईश्वर तक को कि क्या बेकार की चीजें बना दीं आपने.

एक बार उसने एक फल खाया. फल बहुत कड़वा निकला. वह स्वयं पर झुंझलाने लगा. तभी उसकी नजर ऊपर के डाल पर बैठे पक्षी पर पड़ी. वह पहले ही की तरह स्थिर भाव से बैठा था. उसे बड़ी हैरानी हुई.

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