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यमराज कुपित हो गए- दूसरों को जीवनभर लूटने वाला डाकू तो विनम्रतापूर्वक तुम्हारी सेवा करने के लिए तैयार है, पर घमंडी साधु, तुम वर्षों की साधना के बाद भी समझ न सके कि हरेक प्राणी के अंदर एक ही आत्मा समाई है.
यमराज बोले- दूसरे को भक्ति का मार्ग दिखाने वाले साधु तुम्हारी भक्ति अधूरी है. तुम्हारे मन का मैल धोना बहुत जरूरी है. इसलिए आज से रोज तुम इस डाकू की सेवा करोगे.
साधु निरुत्तर रह गया. उसे समझ में आ गया कि उसकी भक्ति में खोट था. उसने दंड स्वीकार किया और डाकू की सेवा में जुटा.
अपनी भक्ति और अपने सत्कर्मों पर कभी भी अभिमान न करें. विनम्रता और शालीनता की अहमियत किसी भक्ति से कम नहीं. प्रभु भी सरल मन प्राणियों पर अपनी ज्यादा कृपा करते हैं.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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