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नारदजी ने पिप्पलाद को बताया कि शनि मनमानी करते हैं. आत्म अभिमान में भरकर वह किसी का भी अहित कर देते हैं जिससे सभी देवता उनसे डरते हैं.

नारद की बात सुनकर पिप्पलाद को बड़ा गुस्सा आया. उन्होंने शनि को सबक सिखाने के लिए अपने तप से प्राप्त धर्मदंड को शनि पर चला दिया.

धर्मदंड शनि का पीछा करने लगा. भयभीत शनि देवताओं की सहायता मांगने पहुंचे लेकिन सभी ने सहायता करने में असमर्थता जताई.

शनिदेव शिवजी के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना की. महादेव शनि की प्रार्थना से पिघल गए. उन्होंने पिप्पलाद से कहा कि शनि को क्षमा कर दो.

महादेव ने पिप्पलाद को बताया कि उनके पिता की मृत्यु के लिए शनि उत्तरदायी नहीं है बल्कि उनकी आयु ही कम थी.

शनि को मैंने ही ग्रहों का दंडाधिकारी बनाया है और मनुष्य के कर्मों के मुताबिक उसके जीवनकाल में ही दंड देने का अधिकार दिया है.

पिप्पलाद ने कहा- यह धर्मदंड है, जिसपर लक्ष्य करके चलाया गया बिना उसे दंड दिए नहीं लौट सकता. शनि ने पिप्पलाद से इसका कोई सरल उपाय पूछा.
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2 COMMENTS

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