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नागराज की बात सुनकर ब्राह्मण उठा और उनकी आज्ञा लेकर चलने लगा. उसने कहा- मैं आत्मज्ञान के लिए भटक रहा था. ज्ञान जिसके पास भी उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए.
आप नागकुल के हैं और मैं मानव, किंतु आपने जो मुझे ज्ञान दिया वह श्रेष्ठ है. अब मैं भी आपके ज्ञान के अनुसार चित्त को स्थिर करके साधना और स्वाध्याय में लगूंगा.
भीष्म पितामह बोले- युधिष्ठिर मैंने तुम्हें यह कथा इसलिए सुनाई ताकि तुमको कभी भी स्वयं के चक्रवर्ती सम्राट होने का अभिमान न हो. हमेशा सदगुणों के स्वागत के लिए तैयार रहना चाहे वह किसी निकृष्ट से ही क्यों न प्राप्त होते हों.
जातीय अहंकार और जातीय द्वेष ये दोनों अवगुण मानव को अविवेक की ओर धकेलते हैं जिसके कारण वह सभी सदगुणों से हीन होकर दुर्गति को प्राप्त करता है. उस समय पर कोई सच्चा मित्र या गुरू ही मार्द दिखाता है जैसे पद्मनाभ की पत्नी ने उसे अधर्म से रोका.
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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्