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बहेलिया हैरान खड़ा रह गया. उसके हाथ में शिकार तो आया नहीं, उलटा जाल भी निकल गया. अचरज में पड़ा बहेलिया अपने जाल को देखता हुआ उन पक्षियों का पीछा करने लगा.

आसमान में जाल समेत पक्षी उड़े जा रहे थे और हाथ में लाठी लिए बहेलिया उनके पीछे भागता चला जा रहा था. रास्ते में एक ऋषि का आश्रम था. उन्होंने यह माजरा देखा तो उन्हें हंसी आ गयी.

ऋषि ने आवाज देकर बहेलिये को पुकारा. बहेलिया जाना तो न चाहता था पर ऋषि के बुलावे को कैसे टालता. उसने आसमान में अपना जाल लेकर भागते पक्षियों पर टकटकी लगाए रखी और ऋषि के पास पहुंचा.

ऋषि ने कहा- तुम्हारा दौड़ना व्यर्थ है. पक्षी तो आसमान में हैं. वे उड़ते हुए जाने कहां पहुंचेंगे, कहां रूकेंगे. तुम्हारे हाथ न आयेंगे. बुद्धि से काम लो, यह बेकार की भाग-दौड़ छोड़ दो.

बहेलिया बोला- ऋषिवर अभी इन सभी पक्षियों में एकता है. क्या पता कब किस बात पर इनमें आपस में झगड़ा हो जाए. मैं उसी समय के इंतज़ार में इनके पीछे दौड़ रहा हूं. लड़-झगड़कर जब ये जमीन पर आ जाएंगे तो मैं इन्हें पकड़ लूंगा.

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