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कर्ण ने कहा- मित्र मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं लेकिन मैं यह युद्ध किसी अन्य साधन से नहीं बल्कि अपने पुरूषार्थ के बल पर नीति के रास्ते चलता जीतना चाहता हूं.

मैं दुर्योधन के पक्ष में खड़ा हूं तो इसका अर्थ यह न लगाएं कि मैं सदैव अनीति का साथ दूंगा. नीति पर चलते यदि अर्जुन मेरा वध भी कर दे तो भी स्वीकार है किंतु अनीति से प्राप्त विजय मेरे लिए मृत्यु से भी बुरी होगी.

अश्वसेन ने कर्ण की प्रशंसा की और कहा- हे वीर आपकी भावनाएं एक सच्चे योद्धा की हैं. मेरी दृष्टि में आप विजयी हो चुके हैं. जीवन में जो अनीतियां हुई हों वह आपकी संगति का असर रहा. आप सर्वश्रेष्ठ योद्धा हैं. पराजित होकर भी आपकी कीर्ति बनी रहेगी.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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