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जब दिवाली कि रात आयी तो पूरे गाँव में अँधेरा था. लकड़हारे का घर रौशनी से जगमग. कोई कोना रोशनी से बाकी नहीं. घर में बैठी दारिद्री की तो आंखें ही फूटने लगीं, वह अंधेरे की जो आदी थी.

दारिद्री ने घर से बाहर जाने कि कोशिश कि तो दरवाजे पर बहू बैठी थी. वह बोली- जाना है तो सात पुश्तों के लिए जाओ. दरिद्री ने परेशान होकर उसकी शर्त मान ली और घर से निकल गई.

इसके बाद जब खूब रात हो गयी तो लक्ष्मीजी आईं. लक्ष्मीजी परेशान अंधरे में उनको कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था. रास्ता चलना मुश्किल. उन्हें लकडहारे का जगमग घर दिखाई दिया. वह उधर ही बढ चलीं.

लक्ष्मीजी लकड़हारे की बहू से बोलीं- गांव में अंधेरे के चलते मेरे पैर में कांटा चुभ गया है. मुझे जल्दी से अन्दर आने दे. बहू ने कहा- माता आपको कब मना है. पर मेरी एक विनती भरी शर्त है.

बहू ने मां लक्ष्मी से कहा- आना है तो सात पुश्तों के लिए आओ कोई और घर या रास्ता न देख लक्ष्मीजी ने उसकी यह शर्त मान ली और उस रात से उसके घर निवास करने लगीं. अगले ही दिन से लकड़हारे के वैभव का क्या पूछना.

इस तरह से यह साबित होता है कि मेहनत करना, मेहनत से पायी कमाई को बचा कर रखना और समय पर बुद्धि का इस्तेमाल करना लक्ष्मी पाने का सबसे सही तरीका है.

स्रोत: लोकगाथा

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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