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कुछ ही दिन बीते होंगे कि रानी जब नहा रहीं थीं तो उनका नौलखा हार एक कौआ ले उड़ा. राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया जो कोई हार लाकर देगा, उसे मुंहमांगा ईनाम मिलेगा.
दीपावली आने वाली थी. दो दिन के बाद ही नरक चौदस था. सो घर की सफाई शुरू हुयी. पता चला नौलखा हार छत पर पड़ा हुआ है और मरा हुआ सांप वहां से गायब है. हार देख लकड़हारा खुश हो गया.
लकड़हारा हार को लेकर राजा के पास यह सोचता हुआ जाने को तैयार हुआ कि वह राजा से इस हार के बदले मुंह मांगी दौलत मांग लेगा उसका बाकी जीवन आराम से बीत जायेगा.
मगर उसकी बहू ने अपने ससुर को समझाते हुये कहा कि जो मैं कहूँ वही मांगना तो हम फायदे में रहेंगे. बहू ने राजा से कहा कि आप इस हार के बदले राजा से सारे गांव की रुई, दीया और तेल मांग लें.
लकड़हारे ने वही मांगा. राजा वचन दे चुके थे. विवश होकर आदेश जारी कर दिया कि लकड़हारा जिस गांव में रहता है उस पूरे गाँव का दीया तेल और रुई लकड़हारे के घर भेज दी जाये.
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