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श्रीराम की सेना लंका पर आक्रमण के लिए तैयार थीं. बस युद्धघोष होने की देर थी. श्रीराम ने सोचा कि रावण को इस विनाश को रोकने का एक अवसर और देना चाहिए.
उन्होंने रावण के पास युद्ध से पहले एक शांति दूत भेंजने का निर्णय किया जो रावण को उसके अपराध बताकर प्रायश्चित के लिए समझाए ताकि असंख्य निर्दोषों के प्राण बच जाएं.
किसे दूत बनाकर भेजा जाए? रावण तो हनुमानजी का वध ही करने को तैयार था. विभीषण के समझाने पर उसने वध की जगह केवल पूंछ में आग लगाने का दंड दिया.
रावण के दरबार में अब विभीषण भी नहीं हैं. इसलिए दूत ऐसा हो जो बुद्धि और बल दोनों में श्रेष्ठ हो. अंगद दूत बनकर श्रीराम का जयघोष करते रावण के महल की ओर चले.
रावण के रक्षकों को मारते-काटते अंगद सीधे रावण के राजदरबार में जा पहुंचे. रावण ने अंगद से वास्तविक परिचय देने को कहा.
अंगद बोले- तुम्हारे लिए इतना परिचय काफी है कि मैं बालीपुत्र अंगद रामदूत हूं और अपने स्वामी का संदेश लेकर आया हूं कि क्षमा मांगकर अपना विनाश रोक लो.
बाली का नाम सुनकर रावण का क्रोध कम हुआ. उसने कहा- तो तुम मेरे मित्र बाली के पुत्र हो. सुनाओ मेरे मित्र का कुशल-मंगल.
अंगद ने कहा- यदि तुम्हारी बुद्धि ठिकाने नहीं आई तो मेरे प्रभु के हाथों तुम भी शीघ्र ही अपने मित्र के पास चले जाओगे और वहीं उनका हाल-चाल पूछना.
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अति ज्ञानवर्धधक और प्रेरक कथा ।
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