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इसलिए बेहतर यहीं है कि आप किसी और तालाब में जाकर अपना कांटा डालें, यहां की मछलियां तो लालच को मौन से जीत लेती हैं.

उसकी बात मछलीमार की समझ में आ गई और वह वहां से चला गया.

कितनी सही बात कही महात्माजी ने कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फंसोगे कैसे? कौआ घोसला नहीं बनाता. पारिवारिक मिजाज और जिम्मेदारियों में फंसने वाला जीव नहीं है. मादा कौआ कोयल के घोसले में अपने अंडे रख जाती है.

कौए और कोयल के बच्चे साथ-साथ पलते रहते हैं. कौआ उस घोंसले में तबतक मजे से रहता है जब तक वह अपना मौन बनाए रखता है. जिस दिन मुंह खोलता है उसी दिन उसकी असलियत सामने आती है और भगा दिया जाता है.

एक भी शब्द व्यर्थ करने से बचना चाहिए. यही बात मछलियों की तरह उन व्यक्तियों को भी समझ लेनी चाहिए जो अपनी बकबक करने की आदत के चलते स्थान और समय का ध्यान रखे बिना अपना मुंह खोलकर मुसीबत में फंस जाते हैं.

गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में मौन का महत्व उस समय और बढ़ जाता है जब न जाने कौन अपना कांटा डाले आपको फंसाने के चक्कर में हो. जैसे ही आपने मुंह खोला आप फंसे.

ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हम मौन का अभ्यास करें. धीरे-धीरे अभ्यास से हम सीख भी जायेंगे. बहुत बार ऐसा होता है कि आप किसी बात पर चुप हो गए तो आपके किसी प्रियजन ने ताने दे दिए कि समय पर तो बात नहीं निकली मुंह से जबाव देते नहीं बना.

आप ऐसे प्राणियों से थोड़ी दूरी बनाकर ही रखें. यह बात कहकर वे मछलीमार की तरह आपके आगे चारे से लिपटा कांटा डाल रहे हैं. उस समय मछलियों वाली बात दिमाग में सोचने लगिएगा. कई परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी.

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-राजन प्रकाश

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