www.Whoa.in

www.Whoa.in

पौराणिक कथाएँ, व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र, गीता ज्ञान-अमृत, श्रीराम शलाका प्रश्नावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ने के हमारा लोकप्रिय ऐप्प “प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प” डाउनलोड करें.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें

हमारा फेसबुक पेज लाइक कर लें. आपको प्रभु शरणम् के पोस्ट की सूचना मिलती रहेगी. यहां शेयर करने योग्य अच्छी-अच्छी धार्मिक पोस्ट आती है जिसे आप मित्रों से शेयर कर सकते हैं.

इस लाइन के नीचे हमारे फेसबुक पेज का लिंक है उसे क्लिक करके लाइक कर लें.
[sc:fb]

हम किसी कार्य में एकाग्र नहीं हो पाते, पूजा-पाठ में मन उचटता है. मन बड़ा इधर-उधर भटकता रहता है, इसे कैसे ठीक करें. ऐसे प्रश्न आए तो मैंने कुछ दिनों पहले कहा- मौन की साधना करो. तुरंत लाभ होगा. उस तर्क को पुष्ट करने के लिए एक पोस्ट दिया एक सुंदर कथा भी सुनाई.

पोस्ट पर कई प्रश्न आए. जैसे, यदि हम मौन रखने लगें तो लोग हमें कमजोर समझने लगते हैं. वे हम पर हावी होने का प्रयास करते हैं इसलिए मौन धारण हो नहीं पा रहा.

कुछ ने तो उसे उल्टे तरीके से लिया- पता नहीं ऊपरवाले ने कितनी जिंदगी दी है उसे मौन रखकर व्यर्थ क्यों करना, खूब बातें करो. बातों से ही तो बनती है बात. बात तो सही है लेकिन जिंदगी हमेशा किसी मोबाइल कंपनी का विज्ञापन भी नहीं है.

मौन के संदेश को सही तरीके से नहीं समझा गया. भीष्म पितामह के जीवन की सबसे बड़ी भूल थी कि उन्होंने तब मौन धारण कर लिया था जब उन्हें सबसे ऊंचे स्वर में बोलना था. वह अवसर था- द्रौपदी चीरहरण.

यानी जब नितांत जरूरी हो तो अवश्य ही बोलना चाहिए पर हठपूर्वक हमेशा नहीं बोलना चाहिए. ज्ञानी और गुणी व्यक्ति का आभूषण है-मौन.

पावस देखि रहीम मन, कोइल साथै मौन
अब दादुर बकता भए, हमको पूछत कौन

कवि रहीम कहते हैं कि जब वर्षा ऋतु आती है तब कोयल मौन धारण कर लेती है, यह सोचकर कि अब तो मेंढक टर्राने लगे हैं तो उनकी कौन सुनेगा? कोयल को गुणवान पक्षी माना गया है.ज्ञानीजन वहां बोलते ही नहीं जहां उनकी बात की बात की कद्र नहीं होती. अज्ञानी हर जगह बोलते हैं.

वाणी ब्रह्म है. उसके द्वारा जो शक्ति फिजूल की खर्च हो रही है, मैं उसे बचाने को कह रहा हूं. जहां पर बोलना आवश्यक है वहां तो बोलना ही है, भीष्म जैसी चुप्पी नहीं लगानी है पर उसमें एक शर्त है कि बोलने से पहले दो मिनट का मौन लेना है.

उस मौन अवधि में अपने दिमाग को कैलुकेलेशन के लिए छोड़ना है कि क्या बोलें और क्या नहीं? उसे निर्णय करने दीजिए. आपके मन और मस्तिष्क दोनों को कुछ समय आराम की आवश्यकता होती है ताकि वह उन शक्तियों को महसूस कर सके, उनमें झांकने की कोशिश करे.

मन की चंचलता बेकाबू होगी तो आपका ध्यान भंग होगा. जो लोग बहुत ज्यादा बोलते हैं, व्यर्थ ही सोचते रहते हैं वह एकाग्रता के लिए तरसते हैं. फिर कहेंगे कि पूजा-पाठ में ध्यान नहीं लगता. मन भटकने लगता है.

मस्तिष्क को अपनी कार के इंजन की तरह समझिए. उसे लगातार ऑन रखेंगे तो गर्म होगा. ज्यादा गर्म होगा तो फिर उसकी ट्यूनिंग खराब होगी और बात-बेबात दिमाग खराब होने लगा तो क्या होगा, बताने की जरूरत ही नहीं.

अपनी प्राणशक्ति को व्यर्थ का खर्च होने से बचा लेना ही साधना है. जहां जरूरत नहीं वहां गूंगे-बहरे हो जाएं. इसे आजमा कर देखिए. मन को बड़ी शांति मिलेगी. कानों का बंद होना जीवन में बहुत सुकून दे जाता है.

आपको एक बड़ी सुंदर कथा सुना रहा हूं. उसे पढ़ने के बाद आप मौन की महिमा को बेहतर समझने लगेंगे.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here