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हालांकि फकीर की उदासी देखकर उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी फिर भी उससे रहा न गया.

सौदागर ने कहा- मैं तो इन चीजों का कारोबारी हूं इसलिए मुझे इनसे फर्क नहीं पड़ता. आप महात्मा-फकीर हैं इसलिए यह सब सुनकर आप दुखी और निराश हैं जो कि स्वाभाविक ही है.

मेरी आपसे विनती है कि आप अपना दिल छोटा न करें, दुनिया ऐसे ही चल रही है. न आप बदल सकते हैं इसे न मैं. मैं भी एक सवाल आपसे पूछना चाहता हूं. क्या मैं पूछ सकता हूं?

फकीर ने सामान्य होने का प्रयास करते हुए कहा- पूछो.

सौदागर ने पूछा- क्या ऊपरवाले ने दुनिया ऐसी ही बनाई थी. मेरे कहने का मतलब है कि जब वह दुनिया बना रहे थे तो क्या उन्होंने सोचा था कि ऐसी दुनिया बन जाएगी. अगर वह जानते थे फिर भी बना दिया तो यह काम शायद ठीक नहीं रहा.

फकीर ने बताना शुरू किया- नहीं मेरे भाई. ऊपरवाले ने नहीं, यह दुनिया तो हमने ऐसी बना दी है.

ऊपरवाले ने तो सबको छोटे से बच्चे के रूप में भेजा. उसे धरती पर भेजने से पहले कहा कि तेरे लिए बहुत अच्छी-अच्छी चीजें धरती पर छोड़कर आया हूं. उसे सहेजना, संभालना और उसका आनंद लेना.

बच्चा ईश्वर को छोड़कर आना नहीं चाहता था फिर भी भगवान की जिद पर आना पड़ा.

उसे तो यह पता न था कि उसकी जात क्या है, धर्म क्या है, कुल-खानदान क्या है. उसे तो दुनिया में भेजा गया कि जो नदी, झरने, जंगल, पहाड़, फल-फूल जैसे ढेरों सुंगर चीजों से सजाकर जो धरती बनाई है उसपर आनंद करेगा.

जाते समय ईश्वर ने कहा- तू रोना मत तेरे लिए को मैं धरती पर वे सारी चीजें रखकर आया हूं जो स्वर्ग में देवताओं को भी आसानी से नहीं मिलता. जी भरके आनंद करना. लेकिन वह बच्चा बोलने के काबिल हुआ तो उसे बता दिया जाता है कि ये तेरे अपने, वे तेरे पराए.

थोड़ा बड़ा हुआ तो बता दिया ये तेरा अपना धर्म, वो तेरा दुश्मन धर्म.

समझने के काबिल हुआ तो उसने वह सारा सामान अपने घर में चारों तरफ पड़ा देखा जो तुम इन गधों पर लादकर बेचने लाए हो. उसे लगने लगा कि शायद इसी सामान का आनंद लेने की बात ईश्वर ने कही थी. उसके बाद बताने की जरूरत ही नहीं.

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