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फकीर ने सुना तो आश्चर्य में आंखें फटी रह गई. तालीम और शिक्षा से तो मन का अहंकार निकलना चाहिए, यहां तो मामला ही उल्टा है.
बोझिल मन से फिर उन्होंने सौदागर से तीसरे गधे पर लगी गठरी के बारे में पूछा- इसमें क्या लिए जा रहे हो भाई?
सौदागर कुटिल मुस्कान के साथ बोला- इस गधे पर तो जो सामान लदा है वह तो बाजार में उतरते ही हाथो-हाथ बिक जाता है. आप बस यूं समझ लें कि कालाबाजारी हो जाती है इस माल की. मुंहमांगे दाम पर बिकता है.
इस गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है, महाराज. बहुत डिमांड में है मेरा यह माल. कई बार तो इसे मैं गधे पर से उतार भी नहीं पाता. बिना उतरे ही बिक जाता है यह माल, इतनी मांग है इसकी.
फकीर ने पूछा- इसे कौन खरीदता है?
सौदागर बोले- इसके ग्राहक हैं ऐसे धनवान लोग, जो एक दूसरे की तरक्की को बर्दाश्त नहीं कर पाते.
ईर्ष्या के लिए ऐसी लूट पड़ी है संसार में! फकीर के चेहरे पर उदासी के भाव थे. उनकी इच्छा अन्य गठरियों के बारे में जानने की भी हुई.
फकीर ने पूछा- अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई, यह भी बता दो?
सौदागर ने कहा- इसमें बेईमानी भरी है.
फकीर- इसकी तलब किसे ज्यादा है, भाई?
सौदागर ने कहा- इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं. इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं. इस माल को बेचने के लिए मुझे बड़ा होशियार रहना पड़ता है. बहुत ज्यादा चतुराई दिखानी पड़ती है नहीं तो लेने-देने के पड़ जाएं.
फकीर ने पूछा- ऐसा क्यों?
इसके खरीदार धोखे से ज्यादा ले जाने या चुरा लेने की फिराक में रहते हैं. क्या जमाना आ गया है बेईमानी का काम करते हैं और बेईमानी को खरीदने में भी बेईमानी को तैयार रहते हैं- सौदागर ने बताया.
फकीर के चेहरे के भाव विचारशून्य हो चुके थे.
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