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बैकुंठ चतुर्दशी के माहात्म्य को देवता और शेषजी सौ वर्षों में भी नहीं कह सकते. जो भगवान चक्रपाणि के जागरण में भक्तिपूर्वक आंगन में गायन और नृत्य करते हैं उनको सहस्त्र गायों के दान का फल मिलता है. इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यरूप लिया था.
अतः इस दिन ब्राह्मणों को खीर आदि अन्न का भोजन कराएं तथा खीर और तिल का हवन करें. इस प्रकार अक्षय पुण्य प्राप्त होता है. फिर विधिपूर्वक कपिला गाय का पूजन करें और उपदेश करने वाले गुरू को सप्तनीक वस्त्र आभूषण आदि से सुसज्जित कर समापन कराएं.
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