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भगवान् वक्रतुंड ने अपने गणों के साथ मत्सरासुर के नगरों पर आक्रमण कर दिया. पांच दिनों तक भयंकर युद्ध चला इस युद्ध में मत्सरासुर के दोनों पुत्र सुन्दरप्रिय और विषयप्रिय मारे गए.

इससे मत्सरासुर क्रोध में जल उठा. उसने युद्धभूमि में आकर भगवान् वक्रतुंड को बहुत अपशब्द कहे. भगवान् वक्रतुंड ने मत्सरासुर से कहा कि तुझे अगर अपने प्राण प्रिय हैं तो शस्त्र त्यागकर मेरी शरण में आजा अन्यथा तेरी मृत्यु निश्चित है.

वक्रतुंड ने उस समय अत्यंध क्रोधित रूप धारण कर रखा था. उनके शरीर से निकल रही ज्वाला से असुरों का शरीर जल रहा था. वे भयभीत होकर भाग रहे थे. असुरों में खलबली मची थी.

शुक्राचार्य को सूचना मिली. वह स्वयं वहां आए और गणपति का रूप देखकर समझ गए कि आज असुरों का अंत हो जाएगा अगर गणेशजी को तत्काल न रोका गया.

मत्सरासुर को शिवजी ने सभी जीवों से अभय किया था किंतु गणपति तो अपनी आंतरिक ज्वाला से उसे भस्म करने को तैयार थे. शुक्राचार्य ने मत्सरासुर को सुझाव दिया कि प्राण बचाने हैं तो गणपति की शरण में चले जाओ.

मत्सरासुर भय से कांप रहा था. गणपति अपनी ज्वाला से उसकी सारी शक्तियां धीरे-धीरे क्षीण कर रहे थे. उसने गुरू के आदेश को मानने में ही भला समझा और विनयपूर्वक वक्रतुंड की स्तुति करने लगा.

मत्सरासुर ने अनेक प्रकार से भगवान वक्रतुंड की स्तुति की. वक्रतुंड प्रसन्न हुए और मत्सरासुर को अभयदान देकर पाताल में बसने और शांत जीवन बिताने का आदेश दिया.

मत्सरासुर वक्रतुंड के आदेश पर पाताल चला गया. शिवजी समेत सभी देवता बंधनमुक्त हुए. देवताओं ने वक्रतुण्ड की स्तुति की. भगवान शिव ने उन्हें खूब आशीर्वाद और शक्तियां प्रदान कीं. मत्सरासुर बाद में गणेशजी का प्रिय गण बन गया.

श्रीगणेश के एकाक्षरी बीज मंत्र “गं” के जप का प्रभाव आपने ऊपर जाना. एक निश्चित संख्या में इस मंत्र के जप का संकल्प लेकर जप करने वाले पर श्रीगणेश की कृपा होती है.

श्रीगणेश भक्त को कम से कम सवा लाख मंत्र का जप का संकल्प लेना चाहिए और दशांश यानी दस प्रतिशत(12,500) का हवन कर देना चाहिए. जिसका मन बहुत भटकता हो उसे इस मंत्र के जप से एकाग्रता बनाने में बहुत सहायता मिलती है.

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ऊं गं गणपत्यै नमः

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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