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कोसल नगरी के आसपास के इलाकों में लोग कहते कि परम विद्वान देवदत्त को बेटा हुआ तो महामूर्ख. हर ओर से उड़ती हंसी से उतथ्य का मन समाज से खट्टा हो गया. वह बैरागी हो गया.

एक दिन वह सब कुछ छोड़-छाड़ कर वन में चला गया. उतथ्य ने गंगातट पर कुटिया बनाई और ब्रह्मचर्य का पालन करते साधना करने लगा. उसने यह नियम बना लिया कि वह कभी झूठ नहीं बोलेगा.

इस तरह चौदह वर्ष बीत गए. देवदत्त ने भी उसे नहीं बुलाया क्योंकि उतथ्य के मूर्ख होने के कारण उनका उपहास ही होता था. इन चौदह वर्षों में उतथ्य ने न तो कोई मंत्र जपा न कोई उपासना की न विद्या सीखी.

करता भी कैसे उसे कुछ ज्ञान ही नहीं था पर इतने दिनों में यह बात चारों ओर फैल गई कि गंगातट पर रहने वाले साधु हमेशा सत्य बोलते हैं. उनके मुख से निकली वाणी कभी झूठी नहीं होती. इस प्रसिद्धि के चलते उतथ्य को लोग सत्यव्रत कहने लगे.

एक बार उतथ्य अपनी कुटिया के पास आसन लगाए मजे में बैठे थे तभी एक घायल जंगली सूअर भागता हुआ आया. सुअर को कई तीर लगे थे. उसने बड़ी आशा से सत्यव्रत की ओर देखा.

घायल सुअर बेतहाशा भागता हुआ उतथ्य की ओर आ रहा था. उसे देख सत्यव्रत के मुंह से अचानक निकला ‘ऐ-ऐ’. भय और दया के भाव से अनचाहे ही उतथ्य ने इस अक्षर को कई बार बोला.

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3 COMMENTS

  1. Your comment..prabhu sharma ji itni sundar kataye gyan vardhak bate aapne ham tak pahuchaya iske liye hum aapka aabhar prakat karte hai ..jai siya ram ji

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