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अब उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि कम से कम वह अपने दुखों से परिचित है. उन्हें झेलने का आदी हो गया है. उनके लिए कुछ रास्ते निकालने की शुरुआत भी की है शायद उसका परिणाम आए तो एकाध दुख घट ही जाएं.
कहीं ऐसा न हो कि नई गठरी में चुने दुख ज्यादा पीड़ादायक हो जाएं.
ऐसे विचारों में खोया वह एक के बाद एक गठरी के सामने से गुजरता लेकिन तय नहीं कर पाया कि कौन सी गठरी चुनी जाए. उसे यह भी भय होता कि कहीं कोई उसकी गठरी न उठा ले.
इसी उधेड़बुन में फंसे उसने आखिरकार अपनी गठरी ही उठा ली और चल पड़ा. उसने तय किया कि इन चुनौतियों का मुकाबले अब पहले से ज्यादा मजबूती से करेगा.
धीरे-धीरे उसे अपना दुख कम होता हुआ प्रतीत हो रहा था. उसके जैसा ही भाव वहां मौजूद हर व्यक्ति में आ रहे थे.
सच में सबको अपना दुख ज्यादा बड़ा और ज्यादा पीड़ादायक लगता है. लगता है कि वही संसार का सबसे दुखी प्राणी है.
किसी के महल के आगे से गुजरते हुए यदि यह ख्याल बार-बार आए कि जब किस्मत बंट रही थी तो वह इस आदमी से पीछे क्यों रहा. अगर वह आगे रहता तो उसे भी ऐसा ऐश्वर्य मिल जाता.
तत्काल अस्पतालों के बारे में सोचिए जहां लाखों लोग जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे हैं. अपाहिज हो चुके हैं. सोचिए कि कम से कम आप किस्मत की लाइन में इनसे आगे तो थे. स्वस्थ हैं, अपना काम स्वयं कर सकते हैं.
बेहतर है कि हम यह सोचें- दुनिया में कितना गम है, मेरा ग़म कितना कम है.
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