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परशुरामजी ने सातों द्वीप वाली धरती कश्यप को दान कर दी. परशुराम को पितरों को दिए वचन अनुसार तीर्थाटन और तप को जाना था. ऐसे में कश्यप के संरक्षण में पृथ्वी जाने से वह प्रसन्न थे.

अब यज्ञ कराने में सहायता देने वाले शेष ब्राहमणों को भी दक्षिणा देनी थी. समूची धरती तो कश्यप की हो चुकी थी. उनको परशुराम क्या देते?

कश्यप मुनि ने इसका हल निकाला और यज्ञ के लिए बनी कई सौ क्विंटल की सोने की वेदिका को तोड़कर सभी में बांट दिया गया.

काश्यप मुनि ने परशुराम को आशीर्वाद ही नहीं प्रसन्न होकर भगवान विष्णु का एक अमोघ मंत्र भी दिया.

फिर कश्यप बोले- तुमने यह सारी पृथ्वी मुझे दान कर दी है. अब इस पर रहने का तुम्हारा कोई अधिकार नहीं. तुम एक दिन भी अब इस पर मत रहो.

इसके बाद वह दक्षिण समुद्र तट की ओर चले गए. सह्याद्रि पर्वत से उन्होंने समुद्र में अपना परशु फेंककर समुद्र से कहा कि जहां तक उनका फरसा गया है कम से कम वहां तक समुद्र पीछे हटे.

परशुरामजी के आदेश पर समुद्र ने एक लंबा तटवर्ती क्षेत्र खाली कर दिया. भड़ौंच से कन्याकुमारी तक के दान या भेंट में प्राप्त समुद्र तटीय प्रदेश को शूर्पारक कहा गया.

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3 COMMENTS

    • अभी यह आईफोन के लिए नहीं है. जल्द ही उपलब्ध होगा. क्षमाप्रार्थी हैं.

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