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गरूड की कथा की पृष्ठभूमि आपको संक्षेप में बताता हूं. कथा बहुत बड़ी है, इतनी बड़ी कि संक्षेप में करने पर भी यह करीब छह हजार शब्दों में हुई इसलिए इसे हमे पांच खंडों में तोड़कर प्रभु शरणम् एप्पस में प्रकाशित करना पड़ा.
आपको यदि कथा विस्तार से पढ़नी हो तो प्रभु शरणम् एप्प तत्काल डाउनलोड कर लें क्योंकि कुंभ के समाप्ति के बाद वह कथा वहां से हटा भी दी जाएगी. एप्प का लिंक इस पोस्ट के शुरू में और अंत में दोनों जगह है, कृपया वहां से डाउनलोड कर लें.
तो अब कथा पर आते हैं.
कुंभ को लेकर जो दो कथाएं बहुत प्रचलित हैं. एक कथा दुर्वासा द्वारा देवताओं को दिए शाप से जुड़ी हुई है और दूसरी गरूड़ द्वारा देवताओं से अमृत कलश छीनने के लिए ही युद्ध की कथा है.
गरूड़ की माता का नाम है विनता. विनता कश्यप से ब्याहीं थीं जिनसे अरूण और गरूड़ हुए. उनकी सगी बहन कद्रू का विवाह भी कश्यप से ही हुआ था पर कद्रू ने छलपूर्वक अपनी बहन को एक शर्त में हराकर अपनी दासी बना लिया.
विनता को दासीत्व से मुक्ति के लिए गरूड के सामने शर्त रखी गई- जाओ अमृत लेकर आओ. यदि अमृत लेकर आ सके तो तुम्हारी माता को दासीत्व से मुक्त कर दिया जाएगा.
गरूड को अमृत कलश चाहिए था इसलिए उन्होंने अकेले देवताओं से युद्ध किया था और उन्हें परास्त भी किया था. इससे प्रसन्न होकर श्रीहरि ने गरूड़ को अपना वाहन बना लिया. यह कथा थोड़ी बड़ी जरूर है पर है बहुत सुंदर. आप एप्प में पढ़ें जरूर आनंद आएगा.
दुर्वासा के शाप और कुंभ के संबंध का सिलसिला आपस में कुछ इस तरह जुड़ता है.
दुर्वासा ने देवराज इंद्र को एक दिव्य माला भेंट की पर मद में चूर इंद्र से उनका अपमान हो गया. दुर्वासा को लगा कि देवी लक्ष्मी की कृपा के कारण इंद्र ऐसे अभिमानी बन गए हैं.
इसलिए उन्होंने देवताओं को श्रीहीन होकर धन और बल दोनों से क्षीण हो जाने का शाप दे दिया. इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ और क्षमा मांगने लगे पर शाप तो वापस हो नहीं सकता था. देवता एक विचित्र संकट में घिर गए.
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dhyan jivan paramaatamaa se milaa detaa hai jisase tum shvyam ho jaaoge.