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दोनों बड़े धर्मात्मा थे इसलिए उन्हें लेने मेरे पार्षद आए और उन्हें अपने साथ बैकुंठ में लेकर गए क्योंकि उन्होंने आजीवन सूर्य की पूजा की थी इसलिए मैं दोनों पर अति प्रसन्न था.
वे दोनों विमान पर चढ़कर बैकुठ लोक में पधारे और मेरे पास दिव्य भोगों का आनंद लेने लगे. (कार्तिक महात्म्य पहला अध्याय संपन्न)
कथा जारी रहेगी…
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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