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सूतजी कथा आगे बढ़ाते हुए कहते हैं- हे ऋषियों! सत्यभामा की बात सुनकर श्रीकृष्ण हंसते हुए उनकी बांह पकड़कर कल्पवृक्ष के नीचे ले गए और कहा कि अपनी समस्त रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्रिय हो. कल्पवृक्ष की तुम्हारी इच्छा की पूर्ति के लिए मैं इंद्र से भी युद्ध को तैयार हो गया था फिर क्या तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर न दूंगा?

सूतजी बोले- हे ऋषियों मैं आपको वह कथा सुनाता हूं जब भगवान श्रीकृष्ण सत्यभामाजी के साथ गरूड़ पर सवार होकर इंद्र के पास स्वर्गलोक का कल्पवृक्ष मांगने गए और इंद्र ने देने से मना कर दिया तो गरूड़ के साथ इंद्र का घोर युद्ध हुआ था.

सत्यभामा ने भगवान से कहा- हे प्रभु! पूर्वजन्म में मेरा स्वभाव कैसा था, मैं किसकी पुत्री थी, मैंने कौन से दान, व्रत या तप नहीं किए जिसके कारण मुझे मृत्युलोक में जन्म लेना पड़ेगा. मैंने कौन से ऐसे पुण्यकर्म किए थे जिससे आपकी अर्द्धांगिनी हुई और आप गरूड पर सवार होकर मेरे साथ संसार में विचरते हैं.
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