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आज आपके लिए लेकर आए हैं- गोकर्ण महाबलेश्वर की प्रचलित कथा. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा भी इससे काफी मिलती जुलती है.
रावण की माता कैकसी ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि पुलस्त्य की पत्नी थीं. वह प्रतिदिन लंका में समुद्र किनारे शिवजी की पूजा करती थी. कैकसी प्रतिदिन मिटटी का शिवलिंग बनातीं, उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर पूजा व अभिषेक करतीं. शिवलिंग समुद्र में उठने वाले ज्वार-भाटे में रोज बह जाता था.
रावण ने अपनी मां से शिवलिंग पूजने का कारण पूछा तो कैकसी ने बताया कि शिवलिंग पूजने से मरने के बाद शिवजी के साथ कैलाशवासी होने का सुख मिलता है. रावण ने माता से कहा कि आप कैलाशवासी होने के लिए इतना कष्ट उठा रही हैं. मैं कैलाश को ही यहां लेकर आता हूं.
अपनी माता की इच्छा पूरी करने के लिए रावण भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगा. रावण की तपस्या से देवताओं खासतौर पर देवी पृथ्वी में खलबली मच गई कि कहीं वह शिवजी को सचमुच प्रसन्न करके कैलाश को लंका ने जाए. इससे पृथ्वी का भार संतुलन बिगड़ जाएगा.
नारद ने श्रीहरि विष्णु को सारी बात कह सुनाई. श्रीहरि ने नारद से कहा कि देवताओं को निश्चिंत रहने को कहो. समय आने पर वह रावण को भ्रमित करेंगे ताकि रावण को याद ही न रहे कि वह क्या मांगने के लिए तप कर रहा है.
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