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वैदिक काल की बात है. एक महान ऋषि हुआ करते थे कक्षीवान. एक बार वह अपने ही समान विख्यात प्रियमेध ऋषि के पास गए और उनसे बोले- प्रियमेध, मेरी एक पहेली सुलझाओ. ऐसी कौन-सी चीज है जिसे जलाने पर तनिक भी रोशनी नहीं होती?
प्रियमेध ने बहुत सोचा पर वह पहेली नहीं सुलझा पाए. जिस चीज के भी बारे में सोचते उन्हें लगता कि उसको जलाने पर थोड़ी सी ही सही पर रोशनी तो पैदा होती ही है. पहेली के हल के उधेड़बुन में उनकी जिंदगी बीत चली.
प्रियमेध ऋषि का जब अंत समय आया तब उन्होंने कक्षीवान को बुला कर कहा- मुझे तुम्हारी पहेली का जवाब नहीं मिल पाया लेकिन आगे मेरे वंश में कोई ऐसा विद्वान जरूर जन्म लेगा, जो इसका जवाब देगा.
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