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धन आवश्यक है लेकिन संसार में धन ही सबकुछ नहीं है. धन के बिना हम बहुत से सुखों से बेशक वंचित रह जाते हैं लेकिन ऐसा न समझें कि धन से सारे सुख आ ही जाते हैं.

प्रकृति का नियम है जो जितनी सुविधा का कारण बनता है वह उतनी असुविधा का भी कारण भी बनता है. इसलिए संतुलन जरूरी है.

फिर ऐसा क्या किया जाए कि खुशियां आएं और फिर वे जल्दी जाएं भी नहीं, इसकी गारंटी कैसे हो. मुश्किल है पर असंभव तो नहीं. पहले एक छोटी सी कथा देखते हैं. फिर इस गारंटी की चर्चा भी करेंगे.

एक मछुआरे ने जरूरत भर मछलियां पकड़ी और तालाब के किनारे आराम करने लगा.

तभी वहां से एक अमीर आदमी गुज़रा. उसने मछुआरे को आराम से बैठे देखकर सोचा कि क्यों न इसे समय का उपयोग समझाया जाए.

उसने मछुआरे से कहा-अभी दिन आधा भी नहीं बिता और तुम आराम से बैठ चुके हो. इस तरह समय व्यर्थ क्यों कर रहे हो.

मछुआरे ने कहा कि वह आज के काम लायक मछलियां पकड़ चुका है इसलिए आराम से बैठा है.

अमीर आदमी ने कहा- अगर तुम्हारा आज का काम इतनी जल्द निपट गया तो क्या हुआ, फिर भी मछलियां पकड़ो.

मछुआरे ने पूछा जब जरूरत ही नहीं तो क्यों पकड़ूं?

अमीर ने कहा- रोज जरूरत से ज्यादा मछलियां पकड़ो. उन्हें बेचकर एक बड़ी सी नाव खरीदो.

मछुआरे ने पूछा कि नाव अगर भी आ जाए तो उस नाव का मैं क्या करूंगा?

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