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कुंभ एक ऐसा अवसर है जिसकी प्रतीक्षा हर हिंदू को होती है क्योंकि यह वह समय है जब सभी देवता पृथ्वी पर आते हैं और पृथ्वी के पवित्र नदियों में स्नान करते हैं.
कुंभ के स्नान के लिए जब देवतागण भी तरसते हैं तो भला मनुष्य क्यों न प्रतीक्षा करे. देवों के पवित्र नदियों में आकर स्नान करने से उस समय इन नदियों के जल की महिमा कई गुणा बढ़ जाती है क्योंकि ये नदियां तो पहले सी अत्यंत पवित्र हैं.
इसमें जब देवताओं का अंश भी प्रवाहित होने लगता है तो उनकी महिमा बढ़नी स्वाभाविक ही है.
पर कुंभ है क्या, यह एक ऐसा प्रश्न है जो हिंदुओं के दिमाग में अक्सर आता है. कुंभ से जुड़ी कथाएं और मान्यताओं से हमारे पुराण आदि भरे पड़े हैं. हम प्रभु शरणम् एप्पस में वे कथाएं शृंखलाबद्ध प्रकाशित कर रहे हैं क्योंकि कथाएं छोटी नहीं हैं.
इतने पावन उत्सव की माहात्म्य कथा भला छोटी कैसे होगी. अनेक स्थानों पर कुंभ के आयोजन से जुड़ी कई भ्रांति कथाएं भी देखने को मिलीं. इसलिए हम आज कुंभ के बारे में जानकारी लेकर आए हैं.
आपने शायद पहले कहीं किसी वेबसाइट पर यह पढ़ लिया हो कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरूड़ को दे दिया और गरूड़ उस कलश को असुरों से बचाने के लिए लेकर भागे थे.
यदि आपने ऐसा पढ़ा हो तो यह गलत जानकारी है. अमृत कलश लेकर गरूड़ नहीं इंद्रपुत्र जयंत भागा था. जयंत बहुत तेज दौड़ता था इसलिए उसे यह जिम्मेदारी दी गई थी.
जयंत ने बारह दिनों तक असुरों को छकाया था परंतु आखिर में असुरों ने उसे पकड़ ही लिया था.
तो फिर गरूड़ के अमृत कलश लेकर भागने की कथा क्या पूरी तरह गलत है. क्या गरूड़ कभी अमृतकलश लेकर नहीं भागे थे?
नहीं पूरी तरह गलत तो नहीं है पर पूरी तरह सही भी नहीं है परंतु प्रसंग दूसरा है.
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dhyan jivan paramaatamaa se milaa detaa hai jisase tum shvyam ho jaaoge.