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आठ महामानवों को पृथ्वी पर चिरंजीवि माना जाता है- अश्वत्थामा, बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, परशुरामजी, कृपाचार्य और महामृत्युंजय मंत्र के रचयिता मार्कंडेय जी.

प्रभु शरणम् में मैं इन महामानवों के अमरत्व की कथा शृंखला जल्द ही आरंभ करूंगा. किस प्रकार ये लोग चिंरजीवि हुए इसकी कथा रोचक है. आज हनुमानजी का दिन है इसलिए हनुमानजी के चिरंजीवि होने की कथा संक्षेप में सुनाता हूं.

कथा को कभी रामचरितमानस की चौपाइयों और रामायण के उद्धरणों के साथ विस्तार से भी सुनाऊंगा उसमें आपको ज्यादा आनंद आएगा परंतु आज मन में प्रेरणा हुई है तो कथा सुना रहा हूं, संक्षेप में ही सही.

पूरी कथा शृंखला के लिए विनती है कि आप प्रभु शरणम् एप्प जरूर डाउनलोड कर लें और हमारा फेसबुक पेज जरूर लाइक कर लें. दोनों के लिंक ऊपर हैं. कथा आरंभ करता हूं.

हनुमानजी सीताजी को खोजते-खोजते अशोक वाटिका पहुंच गए. विभीषणजी से उन्हें लंका के बारे में संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो ही चुकी था.

पवनसुत ने भगवान श्रीराम द्वारा दी हुई मुद्रिका चुपके से गिराई. माता सीता ने उसे तत्काल पहचान लिया परंतु उन्हें आशंका हुई. कहीं मायावी रावण की यह भी कोई माया तो नहीं है.

भगवान श्रीराम को यह बात पता थी इसलिए उन्होंने हनुमानजी को विदा करने से पूर्व ही एक ऐसा रहस्य बताया था जिसे उजागर करने पर माता की आशंका नष्ट हो जाती.

हनुमानजी ने कहा- अतिशय प्रिय करूणानिधान की. करूणानिधान संसार में सिर्फ माता सीता ही श्रीराम को एकांत में कहती थीं. उसके अलावा और कोई नहीं.

माता ने जब यह सुना तो उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया कि यह कोई मायावी वानर नहीं श्रीराम का सेवक ही है.

माता ने अपने नाथ का कुशलक्षेम पूछा. हनुमानजी ने उनकी विरह वेदना बताई कि हे माता आपके विरह में प्रभु इतने दुर्बल हो गए हैं कि जो मुद्रिका मैं लेकर आया हूं वह अब उनकी उंगलियों में नहीं आते बल्कि कंकण यानी कंगन की तरह पहनने योग्य हो गए हैं.

इस प्रसंग को संक्षेप में छोड़ रहा हूं क्योंकि यह इतना सरस है कि इस पर ही लिखूं तो एक पोस्ट कम पड़ जाए पर प्रभु शरणम् एप्प में इस प्रसंग को जल्दी ही प्रकाशित करेंगे कि कैसे प्रभुकी अंगूठी भगवान के लिए कलाई में धारण करने योग्य कंगन जैसी हो गई है. अभी तो संक्षिप्त ही देखें.

हनुमानजी ने प्रभु का संदेश माता को दिया. माता का कुशलक्षेम पूछा. माता से आज्ञा लेकर वाटिका के फल खाए. हनुमानजी ने फल इसलिए खाए क्योंकि माता को आशंका थी कि हनुमानजी जैसे वानरों के सहयोग से क्या प्रभु रावण को जीत सकेंगे.

माता पूछती हैं कि क्या सारे वानर तुम्हारे ही जैसे हैं. तो हनुमानजी कहते हैं कुछ मेरे से छोटे भी हैं. तो माता को शंका होती है कि फिर कैेसे होगा. हनुमानजी ज्ञानियों के बीच अग्रगण्य हैं यानी ज्ञानीजनों में भी श्रेष्ठ हैं इसलिए उनको अपना सामर्थ्य दिखाना आवश्यक हो गया जिससे माता का भरोसा बढ़े.

इसके साथ-साथ रामदूत हनुमानजी को शत्रु के मन में श्रीराम की शक्ति का प्रदर्शन कर एक चेतावनी भी देनी थी. राक्षसों के मन में प्रभु का भय न पैदा करें, ऐसा कैसे संभव था?

हनुमानजी ने फल खाने के बहाने वाटिका में इतना उत्पात मचाया कि रावण ने अपने परमवीर पुत्र अक्षय कुमार को हनुमानजी को पकड़ने भेजा.

अक्षय कुमार बजरंग बली के हाथों मारा गया. अक्षय जैसे वीर का वध एक वानर ने कर दिया, यह सोचकर रावण घबरा गया.

उसने इंद्रजीत को हनुमानजी को पकड़ने भेजा. इंद्रजीत को भी हनुमानजी ने नाकों चने चबवा दिए.

हारकर उसने पवनसुत पर ब्रह्मास्त्र चलाया. ब्रह्मास्त्र का मान रखने को हनुमानजी अल्प मूर्च्छा में आए तो नागपाश में इंद्रजीत ने उन्हें बांध लिया.

हनुमानजी को रावण के दरबार में लाया गया. एक झटके में ही उन्होंने खुद को ब्रह्मास्त्र से मुक्त कर लिया.

रावण ने इंद्रजीत को हनुमानजी का वध करने को कहा लेकिन विभीषण ने समझाया कि दूत का वध करना पाप है. बौखलाए रावण ने अंगभंग की सजासुनाई.

हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने की सजा मिली.

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