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इसके मुताबिक राजा सत्यव्रत के लिए अलग से एक स्वर्गलोक का निर्माण करने का आदेश दिया गया. नया स्वर्गलोक पृथ्वी एवं वास्तविक स्वर्गलोक के मध्य में स्थित हो ताकि ना ही राजा को कोई परेशानी हो और ना ही देवी-देवताओं को.
सत्यव्रत भी इस सुझाव से बेहद प्रसन्न हुए, किन्तु ना जाने ऋषि विश्वामित्र को एक चिंता ने घेरा हुआ था. उन्हें यह चिंता सता रही थी कि कहीं धरती और स्वर्गलोक के बीच होने के कारण हवा के ज़ोर से यह नया स्वर्गलोक डगमगा ना जाए.
यदि ऐसा हुआ तो राजा फिर से धरती पर आ गिरेंगे. इसका हल निकालते हुए ऋषि विश्वामित्र ने नए स्वर्गलोक के ठीक नीचे एक स्तंभ का निर्माण किया जिसके सहारे पर नए लोक को टिकाया जाना था.
माना जाता है कि वही खम्बा समय आने पर एक पेड़ के मोटे तने के रूप में बदल गया और सत्यव्रत का सिर एक फल बन गया. इसी पेड़ के तने को नारियल का पेड़ और राजा के सिर को नारियल कहा जाने लगा.
सत्यव्रत को स्वर्ग भेजने की कई कोशिशें की विश्वामित्र ने की पर उन्हें वहां से गिरा दिया जाता. इससे उनका नाम त्रिशंकु पड़ गया जो स्वर्ग और पृथ्वी लोक के बीच में भटकते रहे. ये कथा बहुत विस्तृत है हम इसे शृंखलारूप में जल्द ही सुनाएंगे.
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